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Wednesday, November 30, 2011

बचे हुए सिक्के . गुल्लक में डाल देतें हैं......
गरीबों के घरों में... हिसाब नहीं होते..
नेता ज़माने में.... बदनाम हैं इस कदर....
गांधी कौन था... बच्चों को समझाऊं किस तरह...
में नींदों का सौदा अभी कर के लौटा हूँ...
रातों से कहे कोई.... हालात काबू में हैं....
दोस्तों से दोस्ती कर के.. कुछ न मिला..
अब दुश्मनों से.. थोड़ी दुश्मनी की जाए ...
बारिश में भीगने का... उसे डर नहीं है अब तक...
आसमान से ज्यादा.... छत टपकती है घर की...
रोज़ दिन पूरा हो जाता है .....
कुछ कहानियां अधूरी छोड़ कर...
माँ ने कुछ रूपए..... आटे के डिब्बे में छुपाये थे....
ख्वाब कुछ ऐसे ..... मेरे पकाए थे....

वो रोज़ नया बहाना कर के घर लौटता है...

बच्चों की पुरानी जिदें टालने के लिए...

Tuesday, November 29, 2011

बचपनों की लाशें... दिखती है इन बस्तियों में...
फिरती हैं ज़रूरतें यहाँ ...कातिलों  की तरह....

जिनसे खेलने की उम्र है उसकी..... 
वो उन खिलोनो को.. सड़क पर बेचता है....
नंगे ज़मीरों वाले भी आजकल  ...
सर पर गांधी टोपी  पहनते हैं...
यह सितम नहीं तो और क्या है.... 
वो सपने में भी आता है.... तो नींदें  उड़ाने को....
बिकतें  हैं यहाँ .....न जाने क्या क्या सामान ...
हमने ज़मीर तक .. तराज़ू पर देखे.. इन दफ्तरों में... 
तेरे ज़ुल्म की तुझे..... यूं सज़ा मिले.....
 मुझसे जो तुने की थी.... तुझे वो वफ़ा मिले....

घर जलाया .....  उन चिरागों ने.... 

जो कहते थे..... की रौशनी होगी.....

वो पत्थर था इसलिए ... जिंदा है अब भी... 
जो आइना होता तो कब का... बिखर गया होता.... 
हवाओं के साथ साज़िश कर .....
चिरागों ने न जाने घर कितने जलाए....

कुछ कहानियां कहीं थी तुम्हारी उँगलियों ने... मेरे हाथों  से..... 

इन लकीरों में .... .. ढूंढता हूँ तुम्हे.. अब भी अक्सर...

Thursday, November 24, 2011

भगत सिंह.....


मार्च २३ १९३१ ... करीब... अस्सी साल बीत गए थे... वो लाहोर जेल के बाहर आज फिर खडा था... अब भी उसे वो दिन याद था... बहुत भीड़ थी जेल के बाहर.... दो और साथी भी थे उसके... फाँसी पर हँसते हँसते चढ़ा था वह.. वही हंसी आज भी उसके चेहरे पर थी.. देश आज़ाद जो हो चुका था... अस्सी साल बीत गए थे ... बहुत आगे बढ़ गया होगा देश... बहुत कुछ बदल गया होगा...

आखिर जान दी थी उसने... जान..

वह इधर उधर देखने लगा... रात बहोत हो चुकी थी... कोई नज़र नहीं आ रहा था... वह आगे की तरफ बढ़ गया... दूर एक दीवार से सटी खुर्सी पर एक बूढा चौकीदार सो रहा था.... वह चौकीदार के पास पहुंचा .. अपना हाथ उसके कंधो पर रखा और .. धीरे से उसे उठाया... "भाई साहब... भाई साहब....."

नीद कच्ची थी.. चौकीदार ने चेहरा उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखा... कुछ जाना पहचाना सा चेहरा लगा... पर याद नहीं था .. किसका.. जाना पहचाना तो था....

"हाँ भाई... इतनी रात अकेले घूम रहे हो... क्या चाहिए" चौकी दार ने चेहरा याद करने की कोशिश करते हुए.. उस से पुछा


"सब कैसा चल रहा है.. सब कुछ ठीक है ना देश में..हम आज़ाद हैं न अब "

सवाल ही कुछ ऐसा था .. की चौकीदार को याद आ गया.. की चेहरा किसका था...

"आप भगत सिंह हैं ना... भगत सिंह.... "

वोह हल्का सा मुस्कुराया... "हाँ...भगत सिंह ही हूँ.. सब ठीक है ना देश में " ....... उसने फिर से चौकीदार से पुछा..

"हाँ सब ठीक है मुल्क में.. पर यह आपका मुल्क नहीं है आप लाहोर में हैं "
"यह पाकिस्तान हैं जनाब.. पाकिस्तान ...., आप हिंदुस्तान जाइए.. दिल्ली जाइए..."

वोह घबरा गया... "पकिस्तान ?? हिन्दुस्तान ??

" हाँ बेटा अब तो चौंसठ साल हो गए" चौकीदार ने उसकी आखों में देखते हुए कहा...

वोह मुड कर वापस अँधेरे की तरफ जाने लगा... हलके हलके कदमों से... वापस मुड कर नहीं देखा... बस चला जा रहा था ... धीरे धीरे...

चेहरे पर हंसी नहीं थी अब... आखें भीग आयीं थी .... वोह इतना कमज़ोर नहीं था.. फाँसी पर भी हँसते हँसते चढ़ा था वह ...... पर आज आखें भीग आयीं थी..


जान दी थी उसने.... जान.....






Saturday, November 19, 2011


बूंदे जो गिरी बारिश की यूं..... कुछ ख्याल भीग गए.....

चार कदम भी चल न पाया वो मुड कर...
जो मुझसे... फांसले चाहता था....

उस पेड़ की हर पत्ते पर एक कहानी लिखी है....
जिसके तने को साथ हमने छुआ था कभी....

वो टूटी छत्री आज भी कोने में पड़ी है.......
जब भी नज़र पड़ती है.... भीग जाता हूँ....

Friday, November 18, 2011

Billionaire...

he was standing on the balcony of his plush bunglow .. looking at the labourers sleeping on footpath just opposite to his bunglow... it was 12 am.. he was not able to sleep..

he went back again to his room.. took a sleeping pill and tried to sleep again... could not sleep.. went to the balcony again.. looked at those sleeping labourers.. sat there in the balcony for about an hour .. sleepless... restless... didn't know what to do.....

went back to the room... took two sleeping pills this time... tried to sleep... but couldn't.... again went to the balcony... it was 4:00 am.... the labourers were still sleeping... on the footpath...

the billionaire.. was awake...



इश्तिहारों में कहीं दब गयीं हैं खबरें .....
हालातों की किसी को कुछ खबर नहीं...

वह नींद की गोलियां खरीदता है बाजारों से.. ..
जो फुटपाथ पर सोये हुए मजदूरों पर रहम खाता है....

Thursday, November 17, 2011

लाल मारुती ...

बहुत गुस्से वाला था वह ... पिताजी हमेशा समझाते रहते की.. बेटा इतना गुस्सा ठीक नहीं हैं .. थोडा दीमाग ठंडा रखा कर.. काफी दिनों से वह मोटर साइकिल की जिद कर रहा था .. पिताजी एक मामूली सी ऑफिस में क्लेर्क की नौकरी करते थे... इसलिए थोडा मुश्किल था.. वह रोज़ आकर पिता से बहस करता.. पिताजी की तबियत ठीक नहीं रहती थी इसलिए ज्यादा नहीं बोल पाते थे..

फिर एक दिन वह शाम को कॉलेज से घर लौटा, कोई दोस्त उससे अपनी मोटर साइकिल पर घर तक छोड़ने आया था. "देखा पिताजी... मेरे हर एक दोस्त के पास मोटर साइकिल है" आज बहुत गुस्से में था वह . खाना भी नहीं खाया..... माँ ने बहुत पूछा, पर किसी की कहाँ सुनने वाला था वह... बहुत गुस्सेवाला था.

देर शाम.. माँ ने चुपके से पिताजी के पास आकर कहा, " कब तक टालते रहोगे ?" कितने महीनों से जिद कर रहा है , ला दो ना इसे मोटर साइकिल" .

पिता ने कुछ कहा नहीं , बस मुड कर एक बार माँ की आँखों में देखा , बस फिर आगे कुछ बात नहीं हुई. कुछ बातें शायद कहीं नहीं जाती सिर्फ समझ ली जाती हैं ..

पिता रात भर सोचते सोचते सो गया , रोज़ की तरह फिर सीने में हल्का हल्का दर्द था.

अगले दिन ऑफिस जाकर उसने लोन के बारे पता किया , पत्नी की आँखों में उसने बहुत कुछ देखा था कल. शाम तक लोन के कागज़ भर दिए, अगले दिन उससे पुरे लोन के पैसे मिलने वाले थे.

वह शाम को घर पहुंचा , पत्नी को बताया की इंतज़ाम हो गया है लोन का... और कल वोह मोटर साइकिल ले आएगा . बेटा घर आया , आज भी गुस्से में था , खाना जल्दी खा कर सो गया था.

पत्नी कुछ घबराई हुई आज , पिता ने ठीक से खाना नहीं खाया था आज, "लोन में तकलीफ तो नहीं होगी ना". पिता ने करवट बदली और पीठ पत्नी की तरफ करते हुए कहा " नहीं , कोई तकलीफ नहीं होगी ". फिर कोई बात नहीं हुई.....

अगले दिन शाम को मोटर साइकिल घर पर थी, माँ दुप्पटे से सीट पोंछती हुई मोटर साइकिल को निहार रही थी... शाम होने वाली थी, बस बेटा घर पहुँचता ही होगा.. पिता के चेहरे पर कुछ भाव नहीं थे. .. आज कुछ ठीक नहीं लग रहा था उसे .. वह खुर्सी पर बैठा हुआ था.. शांत था .. बेटा घर लौटा , और मोटर साइकिल देखते ही ख़ुशी से पागल हो गया .. ना पिता की तरफ देखा ना माँ की तरफ.. सीधा मोटर साइकिल पर बैठ गया.. "अभी पप्पू को दिखा कर आता हूँ ... " उसने मोटर साइकिल शुरू की और घर से बहार निकल गया " ..

माँ बाप अब तक एक दुसरे का देख रहे थे.. माँ ने हल्की सी मुस्कराहट के साथ कहा "बहुत खुश है .."

वह मोटर साइकिल को तेज़ी से चलाता हुआ घर से काफी दूर निकल चूका था... तभी सामने से एक लाल रंग की मारुती वेन उससे टकराते टकराते बची... उस से कुछ दूर ही ब्रेक लगा कर रुकी.. उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया , उसने गाडी साइड में लगाई और सीधा उस मारुती वेन के ड्राईवर का गिरेबान पकड़ कर बाहर निकाला .. बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था उसे..

जब तक पूरा गुस्सा नहीं उतरा उसने उस लाल मारुती के ड्राईवर को छोड़ा नहीं , करीब आधे घंटे की गाली गलोच और हाथापाई के बाद ही थोड़ी शान्ति हुई.. और फिर वह पप्पू के घर की और निकल गया..

शाम को जब वापस लौटा तो देखा की घर पर बहुत भीड़ लगी थी.. वो समझ नहीं पाया की हुआ क्या है... घर के बहार ही मोटर साइकिल लगाई और घर में चला गया.. पिताजी दम तोड़ चुके थे.... माँ कहीं नज़र नहीं आ रहीं थी... औरतों ने उन्हें घेर रखा था...

किसी ने उससे बताया की .. दिल का दौरा पड़ा था पिताजी को... किसी ने शहर से गाडी भी मंगाई थी फ़ोन कर के....पर गाडी पहुँचने से पहले ही... .. पिताजी दम तोड़ चुके थे....

लाल रंग की मारुती वेन थी.... समय पर नहीं पहुंची...

वह आजकल शांत शांत ही रहता है... मोटर साइकिल भी अक्सर घर पर ही खडी रहती है.....


मौत मांगू खुदा तो मौत भी न मिले... बेरुखी भी तेरी.. जानलेवा है..

Wednesday, November 16, 2011

Badtameez... Fauji.....

"Bhai Saab... Zara akhbaar denge...
Ek thakaa sa fauji, raat ke kuch gyaarah baje..
train ke dibbae mein soye hue ek yaatri ko utthane ki koshish kar raha thha..
"Bhai saab... Bhai saab .. zara akhbaar denge..."

Woh yatri uthh kar apni seat par baith gaya... aakehin malta hua bola "kya hai bhai...??"
Fauji apni wardi mein hi thha.. ... uski chutti cancel hui thhi..
Duty pe wapas turant bulaaya thha, reservation milna to namumkin thha,
isliye woh general tiket lekar seedha chhadh gaya thha train mein..

"Bhai saab.. woh akhbaar denge zara.. mein yahaan neeche bichha ke so jaaungaa..."
Fauji halki si aawaz mein bola..
"Arrey bhai saab kyaa baat kar rahein hai .. yahaan ladies so raheein hain .. aap kaise so saktein hain yahaan par"..
woh yaatri zor se chillaayaa..
Fauji ko bhi thoda gussa aayaa... "sirf 4-5 ghante ki baat hai bhai saab... who bhi thoda sa zor se bolaa.."


Baat kaafi badh gayi... aas paas ke log bhi uth gaye...
Hathaapaai.... hui.. Fauji akelaa thha, thaka hua thaa isliye..
jyada kuch kar naa saka... kuch college ke ladkon ne... khoob haath pair chalaaye..
Agle station par police aayi, fauji to train se neeche utaar diya gaya..
kuch chote mote akhbaar ke reporters bhi aaye.. agle din kuch akhbaaron mein khabar bhi aayi..
yaatri ka naam, station ka naam... humgaame ka pura vivaran thha...

par fauji ka naam nahin thha...

Fauji apne base to paunch gaya thha... na jaane kaise pahunchaa hoga.. par pahunchaa thha...
Aate hi turant usse.. ek operation par bhej diyaa gayaa..
ek goli seedha sar par lagi... aur woh shaheed ho gayaa..
Agle din akhbaar mein khabar aayi.... "
aatankwaadion se muthbhed mein ... 6 aatankwaadi maare gaye aur sena ka ek jawaan shaheed hua"
.. ghatna ka pura vivaran thha... jagah ka naam thha... yahaan tak ki aatankwaadi sangathan ka naam bhi thha... par .... iss baar bhi...

fauji ka naam nahin thha..

Kaafi saal beet chukein hain, aaj bhi fauji ke gharwaale sochtein hain....
ki sar par goli ke ghaav ke alaawaa... uss ke haath aur pairon par jo choton ke nishaan thhe ... woh kaise aaye...

aur aaj bhi......woh log, jo uss train ke dibbe mein thhe uss din..
apne doston ko ,uss badtameez fauzi ki kahaani, badi chaav se sunaate hain...

Tuesday, November 15, 2011

Jaane do na saab....


aaj office se aadhe din ki chhuti li thhi..
woh kisi rally mein bhaag lene ke liye jaa raha thha...
Bhrastachar ke khilaaf ...suna thha ki bade bade log wahaan roz aatein hain.. aur bhaashan detein hain..
Bhookh hadtaal par bhi baithaa hai koi.... TV mein dekha thha usne... ab usse khud wahaan jaa kar dekhnaa thha.. ek ajeeb saa mahol thha desh mein.. maano aazaadi ki duusri jang ho...

Dada ji ki puraani topi almaari si nikaali.. aur ... ek chota tiranga lekar ghar se nikal gayaa....
wahaan pahuncha to dekha ki bahut bheed thhi ... motorcycle khade karne tak ki jagah kahin dikh nahin rahi thhi... usne pure maidaan ke do chakkar lagaye.. tab jaa kar ek gate ke paas kuch motorcyclein rakhi hui dekhi.. usne turrant motorcycle ka handle ghumaaya aur motorcycle wahaan laga di...

Gaadi stand par lagayi hi thhi ki.. ek hawaldaar seeteee bajaata hua aaya... "arrey hataao gaadi.. yeh "no parking" hai.. hataao..!! "..

"arrey saab jaane do naa.. kitni gaadiyaan khadi hain yahaan pe"...
hawaldaar bolaa "nahin aap aise nahin laga sakte motorcycle yahaan pe.."

"Arrey saab jaane do naa.. mein aadhe ghante mein wapas aa jaunga..."
"Arrey samajhate nahin kya.. aise nahin park kar sakte"

Usne turant ... jeb mein haath daala... pachaas rupaye ka ek note nikaala...
hawaldaar ke haat mein thamaaya.. aur jhandaa lekar... ek do teen chaar , khatam karenge bhrastaachar chillaane waalon ki bheed mein shaamil ho gayaa....

haan aur usne topi bhi pehni thhi....

Hawaldaar khush thha... woh pachaas rupay ka note jeb mein rakh hi raha thhaa...

ki ek aur motor cycle aayi....

woh phir se seetee bajaane lagaa....


Har ek ke paas.... na jaane kitni kahaaniyaan thhi...
Samaan jo ghar se nikle... sab afsaane le gaye....

Monday, November 14, 2011

Aakhri Bus

Aakhri Bus

Woh roz.. usi paan ke dukaan par aataa thha... shaam ko der raat cigarette peene...
Aaj bhi usi dukaan ke paas bane chabutare par baith kar woh... muh se dhuaan udaate hue.. guzre hue din ke baare mein soch raha thha... aaj tankhwa aai thhi.. pehli tarikh thhi.. shayad kharchon ke baarein mein soch raha thha..

Ek ladka, 20-22 saal ke lagbhag ka ..paas aakar 25 rs maangne laga.. hairan ho kar usne puchaa.. 25 rs ..?? abe itne paise koi maangta hai kya kabhi.. tu to theek thaak ghar ka lagta hai.. itni raat mein bheek maang raha hai....

saab, mein iss busstop pe bahut der se khada hun.. aur kisi ne ye bola hai ki.. ab bus nahin aaeygi. aakhri bus thhi saab... woh riksha walaa 50 rs maang raha hai... mere paas sirf 25 hi hain... Chaal be, tere jaise roz aatein hain... saale naya tarika hai bheekh maangne kaa.. woh cigarette ka dhuaan muh se baahar nikaalta hua gusse se bola...

Saab, mein kal isi jagah aapko lauta dunga... mein jhooth nahin bol raha hun.. raat hai isliye rikshaw waala advance maang raha hai.. nahin to mein usse ghar jaa kar de deta... please saab.. thodi help kijiye naa..
chal be.. bhaag.. kuch nahin milegaa.. usne cig ko pair ke neeche dabaate hue.. zor se kaha, aur sadak paar karta hua apne ghar ki taraf.. jaane laga... tabhi kuch zor se aawaj hui....

aakh khuli to apne to aspataal mein pada hua payaa usne.... chot jyada to nahin lagi thhi.. takkar lag gayi thhi kisi gaadi se.. thodi si kharonchein thhi haathon mein aur maathe pe thodi soojan thhi... shayaad takkar ki wajah se behosh ho gaya thha woh.... tabhi achanak khayal aayaa.. hath mein ghadi dekhi .. gale mein sone ki chain dekhi.. sab thha.. par.. purse??? purse gayab thha... usne apni sabhi jebon mein dekha.... par purse nahin thha.. pure mahine ki tankhwa thhi usme..

Saala woh ladka.. le gaya lagtaa hai... pure.. 8000 rupay thhe usme.. maje ho gaye saale ke...

Tabhi nurse daudti hui andar aayi.. bola aap late jaaiye... aapko abhi aur aaram ki zarurat hai.. kuch reports aani baaki hai..

Nurse.. Mera purse .. mera purse gayab hai.. kaafi paise pade thhe usme.. Nurse haste hue boli.. arrey haan... woh mere paas hai... ek ladka kal tumhe yahan le kar aaya thha.... usne yeh mujhe diya thha sambhalne ke liye... nurse ne purse usse haathon mein dete hue kaha...

Usne jhat se woh purse liyaa aur paise gin ne laga.... pure paise gin ne ke baad... woh khaamosh sa ho gaya... aankhein bheeg aayi uski....
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purse mein 25 rs ... kum thhe....


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Woh itna hi jaanta thha ki purse mein sirf 25 rs kum thhe.. par woh yeh nahin .. jaantaa thha ki.. jis bus se pichli raat takkar hui thhi... woh uss raat ki aakhri bus thi...

Sunday, November 13, 2011


Laqeerein

Beta bada utsuk thha... apne haat ki laqeeron ko dekh kar kuch soch raha thha..
khelte khelte achanak hi nazar pad gayi thhi apne haathon par... daudta hua ghar ke andar gaya...

akhbaar padh rahe pitaa ke paas jaa kar dono haath dikhaate hue bola... papa yeh kya hai.... pita halka sa muskuraaya... bola "Beta yeh tumhaare haath hain..."

"Arrey papa nahin yeh, inn haathon mein kya hai"

Pita phir hasaa aur usse god mein le liya.. uske dono nanhe haath apne haathon mein liye.. aur apne chehre ke paas le gaya... "Beta yeh laqeeren hain... jitni jyaada laqeeren utnaa hi mein tumse pyaar kartaa hun"...

Beta bahut khush hua... ek ek laqeer ko dikhaane laga apne pita ko.. "Papa idhar dekho, idhar bhi, arrey yahaan bhi hai!" kitni saari laqeeren hain... " Aap mujhse kitna pyaar kartein hain naa."

Bahut khush thha baap, ki apne bete ko itni achhi tarah se samjhaa payaa...
Beta apne haathon ki taraf dekhte hue.. daudta hua bahar chalaa gaya...
Shaayad , apne doston ko bataane gaya thha...

Yahaan ghar mein bhaitha pita.. ab bhi khush ho raha thha .. pyaar kya hai .. bahut achhi tarah se samjhaaya usne apne bete ko... Woh anadar hi andar khud par garv kar raha thha ki...
beta phir ghar ke andar daudta hua aayaa ....pita ke saamne khada hogaya ...

aur haafte hue kaha....

"Papa daadi ke haathon par bhi laqeerein thhi.. aur unke to chehre par bhi... kitni saari laqeeren thhi...
phir woh... humaare saath kyon nahin rehti... akeli kyon rehti hain...." ??


na jaane kitni kahaaniyaan bani hongi aaaj.....
na jaane kitne ... ghar der se laute honge....


bacche na hindu.. na muslmaa hotein hain...
schoolon tak kahaan... aaawaz pahunchti hai mandiron aur masjidon ki.

kuch sochta sochta... so gaya woh raat mein....
din ne shaayad... bahut badsaluki ki thhi uss se....


bacche na jaane aaj kal.. ghar mein baithe baithe... video game ke record todte rehtein hain ....
hum to pedon se aam.... aur khidkiyon ke sheeshe toda karte thhe...

dhuul lage bartan ... roz koi nai kahaani pakaatein hain rasoi mein....
woh der se aataa hai raat mein aur... bhuka so jaataa hai...

Woh tumhaari Galti thhi... Aur Mera pyaar....

Saturday, November 12, 2011

film nayi thhi.. logon ko pasand bhi aayi... khoob shor machaaya logon ne har gaane par...
Bacche ko god mein lekar baithi ek maa.... usse chup karaane ki koshish kar rahi thhi...
bahut hilaayaa.. sahlaayaa... par woh so nahin rahaa thha. shor bahut thha....

film nayi jo thhi...

maa bacche ko god mein lekar seat se uthi... aur .. use sehlaate hue.. hall ke baahar aayi...
shor kam thha... woh bacche ko apne haathon mein hilaate hue idar udhar ghoomti rahi...

ussi cinema hall ke baahar...ek kamzor saa admi.. maiele kuchele phate kapde pehne hue..
cycle le kar khadaa thha...
cycle ki aage waali seat par..ek chota sa bachha handle par sar rakh kar sone ka natak kar raha thha.. jee haan natak...

woh aadmi bheed mein idhar uhar cycle le jaakar bacche ki taraf ishaara karta hua haat failaa raha thha...
kuch paise mil jaay usse ..... to shayaad uss bachhe ko sone ka natak naa karna pade..


kuch bacchon ko sulaane ke liye.... bheed se nikaalna padta hai.... aur....
kuch ko bheed mein daalna..................

Hidaayatein dijiye... to hidaayaton ki tarah...
Na mein khada hun aapki chokhat pe.. na aapne dukaan khol rakhi hai..

Sher likhna chaahun... to roz likhun mein....
par kuch din mere... acche bhi guzar tein hain aksar..
Inton se.. ret ke dher pe raaste banaakar khush ho jaate hain..
Bachhe... mazduron ke.. khilone nahin maangte...
kuch saamaan... ghar se... aaj nikaal liye gaye....
yaadon se bharaa pada hai aaj ghar...

waqt lagta hai unhe.. bharne mein...
jakhm jo nazar nahin aate....
Istihaaron mein kahin dab gayi hain khabrein...
Haalaaton ka aaj... kisi ko pata nahin....

Friday, November 11, 2011

Woh ek puraani si sadak ke kinaare... apne dono ghutne muh tak samet kar baitha thha.. budhaa sa lag raha thha...

baal safed .. badhi dhaadi... aur adh khuli jhurriyon waali aakein.. thandi ka mausum thha... tan pe kuch kapde to thhe.. par shaayad kaafi nahin thhe.. thithur raha thha ab bhi woh... do din se bhookha thha.. isliye.. thandi ki fikr nahin thhi usse..

bass aane jaane waali gaadion par nazar thhi.. ki kahin kisi gaadi se koi.. kuch khaana fenkh de... haa fenkh hi de.. woh uun hin pada raha.. gaadion ko dekhte hue.. shaayad itni bhi taqat nahin bachi thhi usme ke hil sake... bas palkein hi jhapak raha thha woh..

Ek hawaldaar tabhi sadak ke dussre aur aa kar khada ho gaya... roz to aisa nahin hota thha... pas koi bandobast hoga shaayad.. neta koi aane waala hoga shaayad...

Tabhi.. ek badi si gaadi uss hawal daar ke paas aakar ruki... koi raasta puch rahaa thha... ek chhote bacche ne apne chhote se haantho ko gaadi se bahar nikaalaa aur kuch sadak ke kinaare phenk diya.. Gaadi aage nikal gayi... Uss budhe ki nazar padd chuki thhi uss khaane par...

Usne ungalian hilai pairon ki... aur gutne chehre se duur kiye... kareeb dus minute tak usne bahut koshih ki.. dheere dheere khada hua ... pair ladkhada rahe the... taqat zaraa bhi nahi thii.. par... iss se pehle ki koi .. jaanwar uss khaane tak pahunche.. usse uss phenke hue khaane tak pahunchnaa thha...

woh hilte dulte.. ladkhadaate hue... sadak paar karne lagaa... tabhi hawaldar ki nazar uss par padi... gusse se hawaldaar ka chehraa tamtamaa gayaa... woh daudta hua .. uss ladkhadaate hue budhe ke paas aaya.. danda ghumaa ke budhhe ko sadak par hi giraa diyaa..

aur gusse se chillaayaa

" Saale Jab khud ko nahin sambhaal saktein... to itni peete kyon hai.."

My dad wrote this..
Ek chhote se kamre mein.... na jaane woh kaise rehtein hain....
itne saare khwaabon ke saath....
We should treat life , like we treat our luggage at Railway Station..
Keeping an eye on it always......holding it tightly.... trusting it only with those who are close...

Not like we treat lugguage at airports
Waiting for it.... watching at other's.. thinking its ours......
and cursing when we are the last one to find ours....



Thursday, November 10, 2011

Kya khareeda aapne..

aaj woh bete ko school chhodne phir ghar se niklaa....
thodi jaldi mein thha shyaad... helmet ghar par hi bhuul gaya...
kuch duur jaane par chowrahe par police waale ne haat dikhakar roka...
ussne jeb se Pacchaas rupey nikaale... aur police waale to thamaate hue aage nikal gaya...

bachha chhota thha... maasum thha..
jab school aaya to scooter se utar te hue.. puchha ...

"papa .. uss chouraahe pe kya kharidaa aapne ??"

Wednesday, November 9, 2011

Tazub hai zindagi kitni dur khhinch le gayi unhe...
Shehron mein rehne waale kheton mein photo khincha rahein hain....
Sote sote raat mein.... woh jaag jaataa hai aksar...
Khuda beti de garib ko... to darwaaza bhi de....
naam tera naa leta to kya kartaa...
mujhe apna kuch yaad thha kahaan..
insaa hun mein.... andheron mein kaise naa bikhar jaaun...
maine taaron ko bhi tuut te dekhaa hai aksar raaton mein....
Raat gehri si hai... Sannataa sa phir hone ko hai... aayeenge "sab ke sab" phir se..
Din mein Khuda jaane yeh "khayaal"... jaatein kahaan hai..
chalon yun kartein hain... ishq pe ilzaam laga detein hain...
phir tum apni raah... mein apni....
Jab akela sa hota hun raaton mein... to khud ko paata hun....
Bheed mey aksar mein kahin kho jaata hun....

Tuesday, November 8, 2011

apne bachhon ke liye mehngi dukaano mein khilone dhoodhte hain...
jo samandar ki reton se khelte thhey kabhi....
Khud ka pet bharne ke liye... ussne hawa tak bech daali ....
Gubbaron mein bhar kar...
raat ka kya hai kal phir aayegi....
aaj nindon ki baat suni jaay...
maine sambhaal ke rakhein hain kuch puraane khat or lifafe...
kal bacche yeh naa puch le ... Daakiyaa kaun thha....
jo sochtaa thha bol detaa thha.....
bachpan ki aadatein kuch theek hi thi..

Sunday, November 6, 2011

bachpan mein kahin... chhoooot gayaa thha peeche...
niklungaa ghar se... phir aaj.. itwaar dhoondne ko....
maa ke dibbae ka mazhab hain hota....
school mein .. mein aur aslam.. saath hi khaate thhe...
maa puchti nahin tankhwa aai ki nahin...
woh ek rupiya na mile mujhe to sar pe ghar uthaa leti hai....
ghar naa jaaun kisi ke to ruuth jaatein hain...
gaaon mein ab bhi woh tehjeeb baaki hai....
Ramayan ki kitaabein khareedne lagi hain maaein baazaaron se....
Jabse bacche Ra.One dekh aayein hain cinemaon mein.....
kuud jaatein hain hawaaon mein parinde...
ghonslon mein seekhe... kaise udaan koi...
chhat pe jaa kar.... woh maangta hai muraadein tut te taaron se....
bhuul jataa hai ki ... khule aasmaa ke niche bhi... sotein hain kai...
bachpan mein kahin... chhut gayaa thha peechee...
niklungaa ghar se... phir aaj.. itwaar dhoondne ko...

Saturday, November 5, 2011

woh puchte nahin uss se.... ke ghar kab lautega...
bacche ab deevar pe tange calendar ki... chuttiyaan gin letein hai....
tumse kya shikayat karun ke tum badal gaye ho...
haalaat yeh hai ki. hume khud ki khabar nahin...

Ye baadal insano se nazar aa rahein hain...
kudh to badal rahein hain pal pal mein..
Mujhe yaad gar jo hota.. tera naam kyon na leta..
Mera sawal yeh hai ki skaksh hun main kaun...
tujhpar ilzaam lagaata...to badnaam khud hota....
mehfion mein hain jaantey... mere naam se tujhe....

Friday, November 4, 2011

woh kuch likh raha thha gaadi ke dhuul bhare sheeshe pe apni choti choti unglion se......
mein ab tak yeh sochta thaa ..... ke shayar akelaa hun main.....
inn haaton ki lakiron se waqif nahin hun main.......
yeh woh shair hain khuda ke........ jinhe padh na paaya main .......
Fir ikkatthe hue hain kisi kone mein raqeebon (dushmano) ki tarah......
Yeh labz kambkhat dil se zubaan tak pahunchein to sahi.....
office ki mez(table) aur kursiyon se din bhar bahut pyaar kiya .....
raat mein to kuch ghar se wafaaein ki jaay..

Thursday, November 3, 2011

Maine orkut pe bahut doondha usse.. par wahan se wo kab ka ja chuka tha...
facebook pe bhi gaya main... logon ne kaha.... jyada dikhtaa nahin aajkal..
twitter pe bhi kai dino se khaamosh tha woh....
pehle ruth tey thhey to ghar chhod kar jaate thhe...
naa jaane log ruthkar kya kya chhod jatein hain aaj....
ussne subah subah khaali scooter der tak hilaayaa....
bacche samajdaar thhe..... school paidal nikal gaye....
main dhuuon se fark kartaa hun... gharon mein...
kahin chilam... kahin chulhe.... kahin khwaab.... kahin insaan jal rahein hain..
Siyaasaton ki aag mein bujh gayein kai chulhe......
Zaruraton ki baarish mein... kai khwaab jal gaye...

Wednesday, November 2, 2011

Raat ke panchi.. phir udein hain..... Alfaazon ka danaa chugne.....
Ghonsla kahin afsaano ka... ban ne ko hai..
Daftaron mein kahin Qaid hain... Zindagi ki roohein...
Isse sadko pe... Kheto mein.... Taaron ki chhat ke neechee le jaao ... yaaron...
Log sochte rahe..... Saansein ab bhi baaki hai......
Katl bhi kiyaa ussne to ... Hasta Chhoda mujhe....
Subah ka sooraj.. ab kuch garm sa hone laga hai.... chiddiyon ki aawaaz bhi dhundhli si hone lagi hai...
Khwaab koi raat ka .... puraa hone ko hai...

Tuesday, November 1, 2011

Kuch phate puraane mailay se note.... woh mutthi mein dabay chala jaa raha thaa....
Daulaton to apnii chupaa raha thaa....
Bas kitaabein hi nahi thhi school ke bastey mein .....
Daatein thhi kuch maa ki.... mor ka ek pankh thha...
Puraane kagaz ke kuch khilone bhhi thhe...

Woh jab gaya , garm chaadrein chhod gaya thha yaadon ki...
Takiye de gaya thha sapno ke...

Na jaane phir bhi kyon..... Neend naa aayi.. raat bhar.....
yaad nahin ... gum kyaa thaa... kuch to thaa...
kuch kaha to thha usne.... par dohraayaa nahin thaa....
deevar pe lage calendar ka... aaj palat gayaa panna....
naya mahina paidaa hua hai .... nayi zaruratein.. phir saans lengi.....
Mud ke zamane ki taraf dekha na thha usne.....Woh jab aaya thaa paas mere .....
Woh gaya to apni harkat phir dohra gaya mujh par.....
Gaur se inko chunaa kijiye....
Deewaarein ghar banati hain ... to giraati bhi hain....