Wednesday, November 30, 2011
Thursday, November 24, 2011
भगत सिंह.....
मार्च २३ १९३१ ... करीब... अस्सी साल बीत गए थे... वो लाहोर जेल के बाहर आज फिर खडा था... अब भी उसे वो दिन याद था... बहुत भीड़ थी जेल के बाहर.... दो और साथी भी थे उसके... फाँसी पर हँसते हँसते चढ़ा था वह.. वही हंसी आज भी उसके चेहरे पर थी.. देश आज़ाद जो हो चुका था... अस्सी साल बीत गए थे ... बहुत आगे बढ़ गया होगा देश... बहुत कुछ बदल गया होगा...
आखिर जान दी थी उसने... जान..
वह इधर उधर देखने लगा... रात बहोत हो चुकी थी... कोई नज़र नहीं आ रहा था... वह आगे की तरफ बढ़ गया... दूर एक दीवार से सटी खुर्सी पर एक बूढा चौकीदार सो रहा था.... वह चौकीदार के पास पहुंचा .. अपना हाथ उसके कंधो पर रखा और .. धीरे से उसे उठाया... "भाई साहब... भाई साहब....."
नीद कच्ची थी.. चौकीदार ने चेहरा उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखा... कुछ जाना पहचाना सा चेहरा लगा... पर याद नहीं था .. किसका.. जाना पहचाना तो था....
"हाँ भाई... इतनी रात अकेले घूम रहे हो... क्या चाहिए" चौकी दार ने चेहरा याद करने की कोशिश करते हुए.. उस से पुछा
"सब कैसा चल रहा है.. सब कुछ ठीक है ना देश में..हम आज़ाद हैं न अब "
सवाल ही कुछ ऐसा था .. की चौकीदार को याद आ गया.. की चेहरा किसका था...
"आप भगत सिंह हैं ना... भगत सिंह.... "
वोह हल्का सा मुस्कुराया... "हाँ...भगत सिंह ही हूँ.. सब ठीक है ना देश में " ....... उसने फिर से चौकीदार से पुछा..
"हाँ सब ठीक है मुल्क में.. पर यह आपका मुल्क नहीं है आप लाहोर में हैं "
"यह पाकिस्तान हैं जनाब.. पाकिस्तान ...., आप हिंदुस्तान जाइए.. दिल्ली जाइए..."
वोह घबरा गया... "पकिस्तान ?? हिन्दुस्तान ??
" हाँ बेटा अब तो चौंसठ साल हो गए" चौकीदार ने उसकी आखों में देखते हुए कहा...
वोह मुड कर वापस अँधेरे की तरफ जाने लगा... हलके हलके कदमों से... वापस मुड कर नहीं देखा... बस चला जा रहा था ... धीरे धीरे...
चेहरे पर हंसी नहीं थी अब... आखें भीग आयीं थी .... वोह इतना कमज़ोर नहीं था.. फाँसी पर भी हँसते हँसते चढ़ा था वह ...... पर आज आखें भीग आयीं थी..
जान दी थी उसने.... जान.....
Friday, November 18, 2011
Billionaire...
he was standing on the balcony of his plush bunglow .. looking at the labourers sleeping on footpath just opposite to his bunglow... it was 12 am.. he was not able to sleep..
he went back again to his room.. took a sleeping pill and tried to sleep again... could not sleep.. went to the balcony again.. looked at those sleeping labourers.. sat there in the balcony for about an hour .. sleepless... restless... didn't know what to do.....
went back to the room... took two sleeping pills this time... tried to sleep... but couldn't.... again went to the balcony... it was 4:00 am.... the labourers were still sleeping... on the footpath...
the billionaire.. was awake...
Thursday, November 17, 2011
लाल मारुती ...
बहुत गुस्से वाला था वह ... पिताजी हमेशा समझाते रहते की.. बेटा इतना गुस्सा ठीक नहीं हैं .. थोडा दीमाग ठंडा रखा कर.. काफी दिनों से वह मोटर साइकिल की जिद कर रहा था .. पिताजी एक मामूली सी ऑफिस में क्लेर्क की नौकरी करते थे... इसलिए थोडा मुश्किल था.. वह रोज़ आकर पिता से बहस करता.. पिताजी की तबियत ठीक नहीं रहती थी इसलिए ज्यादा नहीं बोल पाते थे..
फिर एक दिन वह शाम को कॉलेज से घर लौटा, कोई दोस्त उससे अपनी मोटर साइकिल पर घर तक छोड़ने आया था. "देखा पिताजी... मेरे हर एक दोस्त के पास मोटर साइकिल है" आज बहुत गुस्से में था वह . खाना भी नहीं खाया..... माँ ने बहुत पूछा, पर किसी की कहाँ सुनने वाला था वह... बहुत गुस्सेवाला था.
देर शाम.. माँ ने चुपके से पिताजी के पास आकर कहा, " कब तक टालते रहोगे ?" कितने महीनों से जिद कर रहा है , ला दो ना इसे मोटर साइकिल" .
पिता ने कुछ कहा नहीं , बस मुड कर एक बार माँ की आँखों में देखा , बस फिर आगे कुछ बात नहीं हुई. कुछ बातें शायद कहीं नहीं जाती सिर्फ समझ ली जाती हैं ..
पिता रात भर सोचते सोचते सो गया , रोज़ की तरह फिर सीने में हल्का हल्का दर्द था.
अगले दिन ऑफिस जाकर उसने लोन के बारे पता किया , पत्नी की आँखों में उसने बहुत कुछ देखा था कल. शाम तक लोन के कागज़ भर दिए, अगले दिन उससे पुरे लोन के पैसे मिलने वाले थे.
वह शाम को घर पहुंचा , पत्नी को बताया की इंतज़ाम हो गया है लोन का... और कल वोह मोटर साइकिल ले आएगा . बेटा घर आया , आज भी गुस्से में था , खाना जल्दी खा कर सो गया था.
पत्नी कुछ घबराई हुई आज , पिता ने ठीक से खाना नहीं खाया था आज, "लोन में तकलीफ तो नहीं होगी ना". पिता ने करवट बदली और पीठ पत्नी की तरफ करते हुए कहा " नहीं , कोई तकलीफ नहीं होगी ". फिर कोई बात नहीं हुई.....
अगले दिन शाम को मोटर साइकिल घर पर थी, माँ दुप्पटे से सीट पोंछती हुई मोटर साइकिल को निहार रही थी... शाम होने वाली थी, बस बेटा घर पहुँचता ही होगा.. पिता के चेहरे पर कुछ भाव नहीं थे. .. आज कुछ ठीक नहीं लग रहा था उसे .. वह खुर्सी पर बैठा हुआ था.. शांत था .. बेटा घर लौटा , और मोटर साइकिल देखते ही ख़ुशी से पागल हो गया .. ना पिता की तरफ देखा ना माँ की तरफ.. सीधा मोटर साइकिल पर बैठ गया.. "अभी पप्पू को दिखा कर आता हूँ ... " उसने मोटर साइकिल शुरू की और घर से बहार निकल गया " ..
माँ बाप अब तक एक दुसरे का देख रहे थे.. माँ ने हल्की सी मुस्कराहट के साथ कहा "बहुत खुश है .."
वह मोटर साइकिल को तेज़ी से चलाता हुआ घर से काफी दूर निकल चूका था... तभी सामने से एक लाल रंग की मारुती वेन उससे टकराते टकराते बची... उस से कुछ दूर ही ब्रेक लगा कर रुकी.. उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया , उसने गाडी साइड में लगाई और सीधा उस मारुती वेन के ड्राईवर का गिरेबान पकड़ कर बाहर निकाला .. बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था उसे..
जब तक पूरा गुस्सा नहीं उतरा उसने उस लाल मारुती के ड्राईवर को छोड़ा नहीं , करीब आधे घंटे की गाली गलोच और हाथापाई के बाद ही थोड़ी शान्ति हुई.. और फिर वह पप्पू के घर की और निकल गया..
शाम को जब वापस लौटा तो देखा की घर पर बहुत भीड़ लगी थी.. वो समझ नहीं पाया की हुआ क्या है... घर के बहार ही मोटर साइकिल लगाई और घर में चला गया.. पिताजी दम तोड़ चुके थे.... माँ कहीं नज़र नहीं आ रहीं थी... औरतों ने उन्हें घेर रखा था...
किसी ने उससे बताया की .. दिल का दौरा पड़ा था पिताजी को... किसी ने शहर से गाडी भी मंगाई थी फ़ोन कर के....पर गाडी पहुँचने से पहले ही... .. पिताजी दम तोड़ चुके थे....
लाल रंग की मारुती वेन थी.... समय पर नहीं पहुंची...
वह आजकल शांत शांत ही रहता है... मोटर साइकिल भी अक्सर घर पर ही खडी रहती है.....
Wednesday, November 16, 2011
Badtameez... Fauji.....
"Bhai Saab... Zara akhbaar denge...
Ek thakaa sa fauji, raat ke kuch gyaarah baje..
train ke dibbae mein soye hue ek yaatri ko utthane ki koshish kar raha thha..
"Bhai saab... Bhai saab .. zara akhbaar denge..."
Woh yatri uthh kar apni seat par baith gaya... aakehin malta hua bola "kya hai bhai...??"
Fauji apni wardi mein hi thha.. ... uski chutti cancel hui thhi..
Duty pe wapas turant bulaaya thha, reservation milna to namumkin thha,
isliye woh general tiket lekar seedha chhadh gaya thha train mein..
"Bhai saab.. woh akhbaar denge zara.. mein yahaan neeche bichha ke so jaaungaa..."
Fauji halki si aawaz mein bola..
"Arrey bhai saab kyaa baat kar rahein hai .. yahaan ladies so raheein hain .. aap kaise so saktein hain yahaan par"..
woh yaatri zor se chillaayaa..
Fauji ko bhi thoda gussa aayaa... "sirf 4-5 ghante ki baat hai bhai saab... who bhi thoda sa zor se bolaa.."
Baat kaafi badh gayi... aas paas ke log bhi uth gaye...
Hathaapaai.... hui.. Fauji akelaa thha, thaka hua thaa isliye..
jyada kuch kar naa saka... kuch college ke ladkon ne... khoob haath pair chalaaye..
Agle station par police aayi, fauji to train se neeche utaar diya gaya..
kuch chote mote akhbaar ke reporters bhi aaye.. agle din kuch akhbaaron mein khabar bhi aayi..
yaatri ka naam, station ka naam... humgaame ka pura vivaran thha...
par fauji ka naam nahin thha...
Fauji apne base to paunch gaya thha... na jaane kaise pahunchaa hoga.. par pahunchaa thha...
Aate hi turant usse.. ek operation par bhej diyaa gayaa..
ek goli seedha sar par lagi... aur woh shaheed ho gayaa..
Agle din akhbaar mein khabar aayi.... "
aatankwaadion se muthbhed mein ... 6 aatankwaadi maare gaye aur sena ka ek jawaan shaheed hua"
.. ghatna ka pura vivaran thha... jagah ka naam thha... yahaan tak ki aatankwaadi sangathan ka naam bhi thha... par .... iss baar bhi...
fauji ka naam nahin thha..
Kaafi saal beet chukein hain, aaj bhi fauji ke gharwaale sochtein hain....
ki sar par goli ke ghaav ke alaawaa... uss ke haath aur pairon par jo choton ke nishaan thhe ... woh kaise aaye...
aur aaj bhi......woh log, jo uss train ke dibbe mein thhe uss din..
apne doston ko ,uss badtameez fauzi ki kahaani, badi chaav se sunaate hain...
Tuesday, November 15, 2011
Jaane do na saab....
aaj office se aadhe din ki chhuti li thhi..
woh kisi rally mein bhaag lene ke liye jaa raha thha...
Bhrastachar ke khilaaf ...suna thha ki bade bade log wahaan roz aatein hain.. aur bhaashan detein hain..
Bhookh hadtaal par bhi baithaa hai koi.... TV mein dekha thha usne... ab usse khud wahaan jaa kar dekhnaa thha.. ek ajeeb saa mahol thha desh mein.. maano aazaadi ki duusri jang ho...
Dada ji ki puraani topi almaari si nikaali.. aur ... ek chota tiranga lekar ghar se nikal gayaa....
wahaan pahuncha to dekha ki bahut bheed thhi ... motorcycle khade karne tak ki jagah kahin dikh nahin rahi thhi... usne pure maidaan ke do chakkar lagaye.. tab jaa kar ek gate ke paas kuch motorcyclein rakhi hui dekhi.. usne turrant motorcycle ka handle ghumaaya aur motorcycle wahaan laga di...
Gaadi stand par lagayi hi thhi ki.. ek hawaldaar seeteee bajaata hua aaya... "arrey hataao gaadi.. yeh "no parking" hai.. hataao..!! "..
"arrey saab jaane do naa.. kitni gaadiyaan khadi hain yahaan pe"...
hawaldaar bolaa "nahin aap aise nahin laga sakte motorcycle yahaan pe.."
"Arrey saab jaane do naa.. mein aadhe ghante mein wapas aa jaunga..."
"Arrey samajhate nahin kya.. aise nahin park kar sakte"
Usne turant ... jeb mein haath daala... pachaas rupaye ka ek note nikaala...
hawaldaar ke haat mein thamaaya.. aur jhandaa lekar... ek do teen chaar , khatam karenge bhrastaachar chillaane waalon ki bheed mein shaamil ho gayaa....
haan aur usne topi bhi pehni thhi....
Hawaldaar khush thha... woh pachaas rupay ka note jeb mein rakh hi raha thhaa...
ki ek aur motor cycle aayi....
woh phir se seetee bajaane lagaa....
Monday, November 14, 2011
Aakhri Bus
Aakhri Bus
Woh roz.. usi paan ke dukaan par aataa thha... shaam ko der raat cigarette peene...
Aaj bhi usi dukaan ke paas bane chabutare par baith kar woh... muh se dhuaan udaate hue.. guzre hue din ke baare mein soch raha thha... aaj tankhwa aai thhi.. pehli tarikh thhi.. shayad kharchon ke baarein mein soch raha thha..
Ek ladka, 20-22 saal ke lagbhag ka ..paas aakar 25 rs maangne laga.. hairan ho kar usne puchaa.. 25 rs ..?? abe itne paise koi maangta hai kya kabhi.. tu to theek thaak ghar ka lagta hai.. itni raat mein bheek maang raha hai....
saab, mein iss busstop pe bahut der se khada hun.. aur kisi ne ye bola hai ki.. ab bus nahin aaeygi. aakhri bus thhi saab... woh riksha walaa 50 rs maang raha hai... mere paas sirf 25 hi hain... Chaal be, tere jaise roz aatein hain... saale naya tarika hai bheekh maangne kaa.. woh cigarette ka dhuaan muh se baahar nikaalta hua gusse se bola...
Saab, mein kal isi jagah aapko lauta dunga... mein jhooth nahin bol raha hun.. raat hai isliye rikshaw waala advance maang raha hai.. nahin to mein usse ghar jaa kar de deta... please saab.. thodi help kijiye naa..
chal be.. bhaag.. kuch nahin milegaa.. usne cig ko pair ke neeche dabaate hue.. zor se kaha, aur sadak paar karta hua apne ghar ki taraf.. jaane laga... tabhi kuch zor se aawaj hui....
aakh khuli to apne to aspataal mein pada hua payaa usne.... chot jyada to nahin lagi thhi.. takkar lag gayi thhi kisi gaadi se.. thodi si kharonchein thhi haathon mein aur maathe pe thodi soojan thhi... shayaad takkar ki wajah se behosh ho gaya thha woh.... tabhi achanak khayal aayaa.. hath mein ghadi dekhi .. gale mein sone ki chain dekhi.. sab thha.. par.. purse??? purse gayab thha... usne apni sabhi jebon mein dekha.... par purse nahin thha.. pure mahine ki tankhwa thhi usme..
Saala woh ladka.. le gaya lagtaa hai... pure.. 8000 rupay thhe usme.. maje ho gaye saale ke...
Tabhi nurse daudti hui andar aayi.. bola aap late jaaiye... aapko abhi aur aaram ki zarurat hai.. kuch reports aani baaki hai..
Nurse.. Mera purse .. mera purse gayab hai.. kaafi paise pade thhe usme.. Nurse haste hue boli.. arrey haan... woh mere paas hai... ek ladka kal tumhe yahan le kar aaya thha.... usne yeh mujhe diya thha sambhalne ke liye... nurse ne purse usse haathon mein dete hue kaha...
Usne jhat se woh purse liyaa aur paise gin ne laga.... pure paise gin ne ke baad... woh khaamosh sa ho gaya... aankhein bheeg aayi uski....
.
.
.
.
.
purse mein 25 rs ... kum thhe....
.
.
.
.
.
.
.
.
.
Woh itna hi jaanta thha ki purse mein sirf 25 rs kum thhe.. par woh yeh nahin .. jaantaa thha ki.. jis bus se pichli raat takkar hui thhi... woh uss raat ki aakhri bus thi...
Sunday, November 13, 2011
Laqeerein
Beta bada utsuk thha... apne haat ki laqeeron ko dekh kar kuch soch raha thha..
khelte khelte achanak hi nazar pad gayi thhi apne haathon par... daudta hua ghar ke andar gaya...
akhbaar padh rahe pitaa ke paas jaa kar dono haath dikhaate hue bola... papa yeh kya hai.... pita halka sa muskuraaya... bola "Beta yeh tumhaare haath hain..."
"Arrey papa nahin yeh, inn haathon mein kya hai"
Pita phir hasaa aur usse god mein le liya.. uske dono nanhe haath apne haathon mein liye.. aur apne chehre ke paas le gaya... "Beta yeh laqeeren hain... jitni jyaada laqeeren utnaa hi mein tumse pyaar kartaa hun"...
Beta bahut khush hua... ek ek laqeer ko dikhaane laga apne pita ko.. "Papa idhar dekho, idhar bhi, arrey yahaan bhi hai!" kitni saari laqeeren hain... " Aap mujhse kitna pyaar kartein hain naa."
Bahut khush thha baap, ki apne bete ko itni achhi tarah se samjhaa payaa...
Beta apne haathon ki taraf dekhte hue.. daudta hua bahar chalaa gaya...
Shaayad , apne doston ko bataane gaya thha...
Yahaan ghar mein bhaitha pita.. ab bhi khush ho raha thha .. pyaar kya hai .. bahut achhi tarah se samjhaaya usne apne bete ko... Woh anadar hi andar khud par garv kar raha thha ki...
beta phir ghar ke andar daudta hua aayaa ....pita ke saamne khada hogaya ...
aur haafte hue kaha....
"Papa daadi ke haathon par bhi laqeerein thhi.. aur unke to chehre par bhi... kitni saari laqeeren thhi...
phir woh... humaare saath kyon nahin rehti... akeli kyon rehti hain...." ??
Saturday, November 12, 2011
film nayi thhi.. logon ko pasand bhi aayi... khoob shor machaaya logon ne har gaane par...
Bacche ko god mein lekar baithi ek maa.... usse chup karaane ki koshish kar rahi thhi...
bahut hilaayaa.. sahlaayaa... par woh so nahin rahaa thha. shor bahut thha....
film nayi jo thhi...
maa bacche ko god mein lekar seat se uthi... aur .. use sehlaate hue.. hall ke baahar aayi...
shor kam thha... woh bacche ko apne haathon mein hilaate hue idar udhar ghoomti rahi...
ussi cinema hall ke baahar...ek kamzor saa admi.. maiele kuchele phate kapde pehne hue..
cycle le kar khadaa thha...
cycle ki aage waali seat par..ek chota sa bachha handle par sar rakh kar sone ka natak kar raha thha.. jee haan natak...
woh aadmi bheed mein idhar uhar cycle le jaakar bacche ki taraf ishaara karta hua haat failaa raha thha...
kuch paise mil jaay usse ..... to shayaad uss bachhe ko sone ka natak naa karna pade..
kuch bacchon ko sulaane ke liye.... bheed se nikaalna padta hai.... aur....
kuch ko bheed mein daalna..................
Friday, November 11, 2011
Woh ek puraani si sadak ke kinaare... apne dono ghutne muh tak samet kar baitha thha.. budhaa sa lag raha thha...
baal safed .. badhi dhaadi... aur adh khuli jhurriyon waali aakein.. thandi ka mausum thha... tan pe kuch kapde to thhe.. par shaayad kaafi nahin thhe.. thithur raha thha ab bhi woh... do din se bhookha thha.. isliye.. thandi ki fikr nahin thhi usse..
bass aane jaane waali gaadion par nazar thhi.. ki kahin kisi gaadi se koi.. kuch khaana fenkh de... haa fenkh hi de.. woh uun hin pada raha.. gaadion ko dekhte hue.. shaayad itni bhi taqat nahin bachi thhi usme ke hil sake... bas palkein hi jhapak raha thha woh..
Ek hawaldaar tabhi sadak ke dussre aur aa kar khada ho gaya... roz to aisa nahin hota thha... pas koi bandobast hoga shaayad.. neta koi aane waala hoga shaayad...
Tabhi.. ek badi si gaadi uss hawal daar ke paas aakar ruki... koi raasta puch rahaa thha... ek chhote bacche ne apne chhote se haantho ko gaadi se bahar nikaalaa aur kuch sadak ke kinaare phenk diya.. Gaadi aage nikal gayi... Uss budhe ki nazar padd chuki thhi uss khaane par...
Usne ungalian hilai pairon ki... aur gutne chehre se duur kiye... kareeb dus minute tak usne bahut koshih ki.. dheere dheere khada hua ... pair ladkhada rahe the... taqat zaraa bhi nahi thii.. par... iss se pehle ki koi .. jaanwar uss khaane tak pahunche.. usse uss phenke hue khaane tak pahunchnaa thha...
woh hilte dulte.. ladkhadaate hue... sadak paar karne lagaa... tabhi hawaldar ki nazar uss par padi... gusse se hawaldaar ka chehraa tamtamaa gayaa... woh daudta hua .. uss ladkhadaate hue budhe ke paas aaya.. danda ghumaa ke budhhe ko sadak par hi giraa diyaa..
aur gusse se chillaayaa
" Saale Jab khud ko nahin sambhaal saktein... to itni peete kyon hai.."
My dad wrote this..
We should treat life , like we treat our luggage at Railway Station..
Keeping an eye on it always......holding it tightly.... trusting it only with those who are close...
Not like we treat lugguage at airports
Waiting for it.... watching at other's.. thinking its ours......
and cursing when we are the last one to find ours....
Thursday, November 10, 2011
Kya khareeda aapne..
aaj woh bete ko school chhodne phir ghar se niklaa....
thodi jaldi mein thha shyaad... helmet ghar par hi bhuul gaya...
kuch duur jaane par chowrahe par police waale ne haat dikhakar roka...
ussne jeb se Pacchaas rupey nikaale... aur police waale to thamaate hue aage nikal gaya...
bachha chhota thha... maasum thha..
jab school aaya to scooter se utar te hue.. puchha ...
"papa .. uss chouraahe pe kya kharidaa aapne ??"
Wednesday, November 9, 2011
Tuesday, November 8, 2011
Sunday, November 6, 2011
Saturday, November 5, 2011
Friday, November 4, 2011
Thursday, November 3, 2011
Maine orkut pe bahut doondha usse.. par wahan se wo kab ka ja chuka tha...
facebook pe bhi gaya main... logon ne kaha.... jyada dikhtaa nahin aajkal..
twitter pe bhi kai dino se khaamosh tha woh....
pehle ruth tey thhey to ghar chhod kar jaate thhe...
naa jaane log ruthkar kya kya chhod jatein hain aaj....
Wednesday, November 2, 2011
Tuesday, November 1, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)