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Thursday, August 9, 2012

आज जन्मदिन था उसका

आज जन्मदिन था उसका, कभी ये दिन मेरे लिए सब कुछ था , किसी भी और दिन से ख़ास, 
हां लेकिन अब सब  पहले जैसा नहीं रहा. 
मैं जानता हु की ये दिन  हर साल आएगा, और मुझे ये याद दिलाएगा की वो कभी मेरे लिए ख़ास था.

आज पूरा दिन मैं  यही सोचता रहा, की अगर सब कुछ ठीक चलता तो मैं  क्या करता? 
कुछ नया लिखता, कोई पुरानी चीज़ रंग बिरंगे कागजों में लपेटता, जानता नहीं क्या करता. 
पर कुछ अलग सा , कुछ पागलों सा तो ज़रूर करता, पर अगर सब ठीक होता तो.
ट्रेनों का पीछा करना, पुराने फटे हुए बिलों को संभाल के रखना, टूटे हुए बालों को पर्स में रखना, 
शायद पागलों सा ही तो काम है .

मैं रोज़ ये सोचता हूँ की मैं उबर गया हूं, वही पुराना घर , पुरानी चीज़ें, यहाँ तक की कार की  वो खाली सीट मुझे अब परेशान नहीं करती.
खुद को जिंदा रखने की कोशिशें आखिर रंग ला रही है, हाँ ज़रा मुश्किल तो था, पर हो गया मुझसे, न जाने कैसे?

डिलीट का बटन,जाने कितनी बार इस्तेमाल किया होगा मैंने पिछले कुछ महीनो में.
सोचा दिल को खाली करना है तो पहले लैपटॉप से ही शुरुआत की जाए.

कुछ चीज़ें हैं पर ,  जिन्हें जलाने की भी कोशिशें की , पर मुझसे जली नहीं. 
कई बार लौटाने को भी निकला था मैं पर...
कभी पैर चलने लायक नहीं थे, कभी दिल एक कदम न बढ़ा पाया.

ये सारी चीज़ें मुर्दा है , अब बातें नहीं करती मुझसे. 
पर आज ना जाने कैसा कोलाहल सा मचा रखा था इन सब ने मिल कर.
एक पुरानी जली हुई माचिस की तीली भी थी, जिससे कभी मोमबत्ती जलाई थी उसने.
ऐसा लगा फिर जल उठी हो, वो पुराना रेस्टोरेंट का बिल भी जैसे कोई पुराना हिसाब मांग रहा हो.
कार की वो खाली सीट आज कुछ दबी दबी सी लगी, यहाँ तक की मैंने उस तरफ जाती एसी की ठंडी हवा तक रोक दी.
एक दिन की ही तो बात थी, कल फिर मुर्दा हो जाएंगे सब, और किसी हद तक मैं भी.

सच कहूँ तो आज कुछ भी नहीं किया मैंने, खुद को संभालने के अलावा.
पर कुछ अलग सा , कुछ पागलों सा तो ज़रूर करता, पर अगर सब ठीक होता तो.
अगर सब ठीक होता तो.