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Monday, July 28, 2014

फौजी अकेला नहीं लड़ता...

आप में से बहुत लोगों ने देखा होगा , फेसबुक पर अक्सर एक बर्फीली छोटी पर खड़े एक फ़ौजी की तस्वीर पोस्ट की जाती है , -४० डिग्री के ख़ून जमा देने वाली ठंड में वो सीमा खड़ा रह कर हमारी रक्षा करता है , आपसे उस तस्वीर को लाइक और शेयर करने को कहा जाता है। ऐसा कैलेंडर की कुछ चुनिंदा तारीखों पर ही होता है , इन चुनिंदा तारीखों पर  देशभक्ति का एक अस्थायी जोश, एक अस्थायी भाव हमारे  और आपके ज़हन में दौड़ पड़ता है , वही अस्थायी जोश वही अस्थायी भाव जो सिनेमा हॉल में राष्ट्रगीत के समय खड़े होने पर आता है।  खैर जाने दीजिये, उस फौजी की बहादुरी , उसके बलिदान की तुलना तो क्या, कोई प्रश्न भी नहीं उठा सकता ,जान की बाज़ी लगा देने वाले उस जाबांज़ जवान को लाखों सलाम। 

मैंने भी उन तस्वीरों को अक्सर देखता हूँ , पर मुझे उन तस्वीरों में सिर्फ वो फौजी नहीं नज़र आता , मुझे उन तस्वीरों में कुछ और भी नज़र आता है , ये इसलिए क्योंकि मैं भी एक फ़ौज़ी का बेटा हूँ। मुझे और क्या नज़र आता है ?  मुझे उसकी वो बीवी नज़र आती है जो दूर किसी गाँव में घर पर अकेली अपने बूढ़े सांस ससुर की सेवा कर रही है,ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है पर उन दो बच्चों को रोज़ स्कूल भेजती है , अकेले। फ़ौजी के पिता को इस बात का गर्व है की उसका बेटा फ़ौज में हैं ,गाँव भर में बताता फिरता है,  माँ और बीवी को भी गर्व है , पर एक डर भी है , वो डर जो हर फ़ौज़ी की माँ और बीवी को होता है , और अक्सर ये डर उस गर्व पर हावी रहता है ।  आप समझ सकतें हैं ना। 

ये किसी छोटे गाँव में बसे साधारण लोग होते हैं , आपसे और मुझसे बहुत अलग।  इनकी कहानियाँ कहीं नहीं छपती इनकी तस्वीरों को कोई फेसबुक पर लाइक नहीं करता। हम वो लोग हैं जो कैलेंडर की तारीखों के हिसाब से उस फौजी को याद करते हैं हमारा राष्ट्रप्रेम किश्तों में बाहर निकलता है। इन लोगों को कभी सिनेमा घरों में जाकर राष्ट्र प्रेम अनुभव करने का अवसर नहीं मिलता,पर देश के लिए ये जो रोज़ , हर पल , हर दिन करतें है , वो आप और मैं कभी नहीं कर सकते।

जितना मुश्किल उस फ़ौज़ी के लिए ठण्ड में सरहद पर खड़ा होना होता है , उतना ही मुश्किल उसके परिवार के लिए उस गाँव में अकेले रहना होता है, उतना ही मुश्किल उन दो बच्चों का रोज़ स्कूल अकेले जाना होता है । आपको सरहदों की तस्वीरों में वो फ़ौजी तो नज़र आता है , पर उसका पिता , उसकी माँ उसके बच्चे नज़र नहीं आते।   ना पिता का वो गर्व नज़र आता है ना माँ का डर। हम हर साल कैलेंडरों की उन तारीखों पर फ़िर चाहे वो १५ अगस्त हो , २६ जनवरी हो या कारगिल का विजय दिवस, उन फौजियों को याद करते हैं , पर हम कहीं न कहीं उनके परिवारों को भूल जातें हैं। 

एक फ़ौजी जब फ़ौज में जाता है ,वो  अकेला नहीं जाता , उसके साथ उसका पूरा परिवार जाता है , वो अकेला ठण्ड में सरहदों पर खड़ा नहीं रहता ,उसके साथ उसका पूरा परिवार खड़ा रहता है, जब जंग होती है तो उस जंग में वो फौजी अकेला नहीं लड़ता , उसके साथ उसका पूरा परिवार लड़ता है, और जब फ़ौजी शहीद हो जाता है , जब वो मरता है , वो अकेला नहीं मरता , उसके साथ उसका पूरा परिवार मरता है। पूरा परिवार .



Pic From : https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0uGiLiZgtAQ0VMhyHZMgTpLI4PsHKvUwcTgB_naePxqg-mHXBhYBvujhyDzZ-8ahi-KCuHdptCZqWz9ByqaUZdAXWqjFkoUQwhc1Qq6pWwjr6VGpn0Tt43gMNSmIeFDkGhoXSCIkGw8k1/s1600/Indian_Army_soldier_at_Camp_Babina.jpg