Saturday, December 1, 2018
360 सेकंड ...
Saturday, November 24, 2018
सूखा पेड़
मैं घर के पीछे, आंगन में बैठे बैठे धूप सेंकते हुए ये सोच रहा था। बहुत दिनों बाद छुट्टियों पर घर लौटा था।
" ऐसे घर में क्यों घुस रहे हो" ?
Saturday, November 3, 2018
थर्ड AC - भाग - २
Pic From: https://www.inmarathi.com/unknown-rules-about-indian-railway/indian_railways-marathipizza1/
Wednesday, October 31, 2018
थर्ड AC - भाग - १
Monday, October 15, 2018
मंदिर
मेरे दफ़्तर का रास्ता मंदिर के सामने से गुज़रता था, वह बाहर बैठी रोज़ मुझे देख कर मुस्कुराती, एक हाथ में गेंदे का हार लिए तमिल में कुछ कहती , मैं मुस्कुराते हुए "नहीं अम्मा" कहते हुए हाथ दिखाता हुआ निकल जाता ।
यह रोज़ होता था, वह रोज़ हाथ में फूल लिए कुछ बोलती, मैं रोज़ मुस्कुराता हुआ निकल जाता ।
बचपन से कभी खुद मंदिर नहीं जाता था, माँ बहुत ज़िद करती थी पर प्रसाद के अलावा मुझे कोई और कारण नज़र नहीं आता था। फिर एक दिन माँ का मैसेज आया , व्हाट्सएप्प पर
"बेटा मंदिर में फूल चढ़ाना"
माँ को ठीक से मोबाइल इस्तेमाल करना भी नहीं आता , और आज न जाने कहाँ से वॉट्सएप सीख कर वह मुझे ये लिख रही है ...
"टिंग" , फिर मैसेज आया
"तुम्हारी माँ को अच्छा लगेगा"
माँ भी ना ...
अगले दिन शाम को दफ्तर से लौटते समय कार्तिक साथ आया, मंदिर पर बाइक रोकी पर वह अम्मा वहाँ नहीं दिखी। मैंने उसकी बगल में बैठने वाली से फूल ले लिए, वह मुझे पहचान गई थी।
वापस बाहर निकलते समय उसी फूल वाली से कार्तिक को पूछने को कहा
"इससे पूछो वो अम्मा कहाँ हैं "?
कार्तिक ने उससे तमिल में कुछ बात की
"वह अम्मा अब नहीं रही" !!
"क्या" ??
मैं छह महीने तक उसे देख मुस्कुराता हुआ निकलता रहा और आज जब उससे मिलना था तब ...
कुछ सूझा नहीं क्या जवाब दूं ? खैर,भारी मन से वापस बाइक की ओर लौटने लगा, फिर कुछ याद आया
"कार्तिक वह अम्मा रोज़ मुझे तमिल में कुछ कहती थी"
"ज़रा उस औरत से पूछो तो, क्या कहती थी" ?
कार्तिक वापस बाइक से उतर कर उस औरत के पास गया और मेरी ओर इशारा करते हुए उससे तमिल में कुछ बात की
फिर वापस आकर बाइक पर बैठ गया,
"क्या कहा उसने , अम्मा रोज़ मुझे क्या कहती थी" ?
उसने मेरे कंधे को थपथपाते हुए कहा
"कुछ नहीं, वह बस ये कहती थी कि"
""बेटा मंदिर में फूल चढ़ाना, तुम्हारी माँ को अच्छा लगेगा .."
#mbaria
13 अक्टूबर 2018
Saturday, March 24, 2018
लैपटॉप, पर्दा और चार दोस्त ...
एक लोहे की सलाखों वाली खिड़की है, जिस पर एक पुरानी चद्दर लगी हुई है, उस फटी चद्दर को ये समझा कर वहां टांगा गया है कि वो पर्दा है। ये तथाकथित पर्दा खिड़की के ऊपरी दोनों कोने में लगी दो बड़ी छोटी जंग लगी कीलों पर किसी भीड़ से भरी लोकल ट्रेन में सफर कर रहे एक मुम्बइये जैसे अपने दोनों हाथों पर लटका है ।
ज़मीन पर एक प्लास्टिक की चटाई बिछी है, जो करीब पाँच छह जगह पर सिगरेट के ठूंठों से जलाई गई है, ठीक बीच में एक हिंदी का उम्रदराज़ अख़बार सीना चौड़ा किये लेटा है, हिंदी के उम्रदराज़ अख़बारों की ये पुरानी आदत है कहीं भी फैल कर लेट जाते हैं। उसी अख़बार के ठीक बीच में एक स्टील का छोटा ग्लास बड़ी मुश्किल से अपना बैलेंस बनाए खड़ा हुआ है। एक चौथाई पानी से भरे इस स्टील के ग्लास में , सिगरेट के पाँच छह ठूठों की लाशें पड़ी हैं, जो फूल कर ऊपरी सतह पर तैर रहीं है, कुछ जली हुई माचिस की तीलियाँ भी हैं, जो इन लाशों के नीचे तले में पड़ी हैं , और वो जैसे शाम होती है ना, ठीक उसी तरह , वक़्त के साथ साथ पानी का रंग भी भूरे से और भूरा होता जा रहा है । ग्लास में अब भी इतनी जगह है कि लगभग और दस बारह ठूंठे आराम से आत्महत्या कर लें ।
इसी बिछे हुए अख़बार के एक कोने में कुछ तले हुए लावारिस मूंगफली के दाने पड़े हैं जिनके बदन पर एक बड़ा सा काला निशान है,ये सब अपने झुंड से बिछड़ गए हैं । इन दानों में कुछ नंगे हैं तो कुछ अब भी अपनी इज़्ज़त छिलके से बचाने की कोशिश में हैं । एक स्टील की घायल प्लेट भी हैं जिसमें मूँग दाल के कुछ दाने प्याज़ के टुकड़ों के साथ दोस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं । कुछ साबूत प्याज़ भी हैं जो चटाई की सरहद के पार घुसपैठ करने को तैयार खड़े हैं,सरहद पार करते ही हलाल कर दिये जाएंगे । अंडों के छिलके पड़े हैं जो एक दूसरे की गोद में बैठ कर कम जगह में भी अडजस्ट कर रहे हैं। नमक और लाल मिर्ची की अधखुली पुड़ियाँ इन अंडों के छिलकों को अब तक सांत्वना दे रहीं है।
चटाई के बगल में एक दीवार है, चिप्स और कुरकुरे की कुछ महँगी खालें पड़ी हैं, एक नमकीन का पैकेट भी है,सी थ्रू ड्रेस वाला , बेशर्म पेट फुलाये चटाई की सरहद के पार ज़मीन पर पड़ा हुआ है, शायद अब तक किसी की नज़र ही नहीं पड़ी उस पर ।
चार ग्लास हैं काँच के, अलग अलग आकार के कोई बड़ा कोई छोटा, कोई लंबा कोई मोटा, और हाँ एक स्टील का भी है। इन सभी ग्लासों के हलक में करीब 60 ml शराब पड़ी है जिसकी शादी कुछ ही देर पहले एक डुप्लीकेट मिनरल वाटर बोतल के ठंडे पानी से हुई है, स्टील के ग्लॉस में 60 ml से ज़्यादा शराब है, बाहर से कुछ नज़र नहीं आता ना इसलिए ज़्यादा ले ली गयी है, वो जैसे करप्शन होता है अपने देश में वैसे ही।उस घायल स्टील की प्लेट से कुछ दूर एक बर्फ़ की सफेद ट्रे पड़ी है जिसमें अपने अपने दड़बों में पड़े पड़े कुछ बर्फ़ के टुकड़े रो रहे हैं, इनमें से कुछ टुकड़े ग्लासों में हो रही उस शादी में अपना दम ख़म खपा रहे हैं।
सोड़ा की एक प्लास्टिक बोतल है, ग्लास में हो रही शराब और पानी की शादी में उसका बहुत बड़ा हाथ है, और इस बात की उसको इतनी खुशी है की, ज़मी पर लेटे लेटे अपने हाथ ऊपर किये नागिन डांस कर रही है ।
एक पंखा छत पर घूम रहा है जो सिर्फ आवाज़ से ही अपने होने का एहसास दिला रहा है,सोड़े की बोतल द्वारा हो रहे उस नागिन डांस में उसका भी कुछ हाथ है। हवा बाज़ हैं दोनों के दोनों ।
दो सिगरेट के डब्बे पड़े हैं अलग अलग ब्रैंड के , एक अब भी साबुत है और दूसरे के लगभग तीन किरायेदार घर छोड़ कर जा चुके हैं। एक छोटी मगर दिलेर माचिस की डिबिया अकेले इन दो डब्बों को आँख दिखा रही है। स्त्री सशक्तिकरण का शायद इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। उस अख़बार, उस प्लेट ,उन ग्लासों के आस पास चार लोग बैठे हैं , चार दोस्त । कमरे में सिगरेट का धुआं भरा पड़ा है जो उस तथाकथित पर्दे को चकमा दे कर ज़रा ज़रा करके बाहर हो रहा है ।
बगल में एक लैपटॉप पड़ा है, जिसपर किसी की बेफवाई बयां करने वाला एक पुराना गाना चल रहा है, उन चारों में से एक दिलजला , शून्य में झांकता हुआ कश लगा रहा है, गाने के बोल सिर्फ वही सुन रहा है, बाकी तीन संगीत की दीवार पर बैठे हुए हैं। एक का ध्यान दूर पड़ी उस सस्ती शराब की बोतल पर है , जिसमे पड़ी शराब की मात्रा ये तय करेगी कि खाना कब शुरू करना है। दूसरा जो आर्थिक तौर पर थोड़ा कमज़ोर है अपने ज़हन में ये हिसाब लगा रहा है कि जो ख़र्चा हुआ है उसे चार बराबर भागों में बांटने के बाद, बाकी तीनों से उसे कितना कितना पैसा लेना है। मैं चटाई के इक कोने में बैठा ये सब देख रहा हूं, हम चारों भी तो उन ग्लासों की तरह तो थे, एक दूसरे से एकदम अलग बिलकुल जुदा, फिर भी साथ साथ।
"ठक ठक ठक" दरवाज़े पर कोई आया है शायद, खाना आ गया होगा। "ठक ठक ठक"
पलट कर देखा , टाई पहना एक वेटर खड़ा था। आस पास देखा, तो न वो कमरा था, न चटाई, न पंखा न वो खिड़की न चादर, न वो तीन दोस्त, सिर्फ़ एक महंगा रेस्टॉरेंट था, अंधेरा अँधेरा सा था वहां।
वेटर चमड़े की चमकीली छोटी सी फ़ाइल में बिल लिए खड़ा था,
"Sir ..."
मैंने बिल हाथ में लिया
"ब्लैक लेबल 60 ml - two unit, 650 ml - soda one unit, Tax ...
total Rs,1420 "
मैंने उस बिल को करीब से देखा , उस चमड़े की फ़ाइल में 500 के तीन नोट डाले , कुर्सी से सटा लैपटॉप का काला बैग उठाया और जैकेट कंधे पर लटकाए बाहर निकल गया जैसे आया था वैसे ही ...
अकेले ...
जाते जाते मुड़ कर देखा तो उसी रेस्टॉरेन्ट की वो बड़ी खिड़की नज़र आई, सफ़ेद पर्दा बहुत सुंदर लग रहा था।
और हाँ अब लैपटॉप पर गाने नहीं बजते ...
#mbaria