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Saturday, March 1, 2014

"मुस्कान"


तीसरे मंज़िल पर मेरे ही फ्लैट के बगल में रहती ही , बस एक दरवाज़े बगल का , उम्र कुछ ८-९ साल कि होगी, तीन महीने से वे लोग बगल में रहने आये थे।   

एक बार यूं ही जब मेज़ पर बैठे बैठे कुछ लिखने कि कोशिश कर रहा था कि दरवाज़े कि खुलने कि आहाट आयी , पहले तो यूं लगा जैसे हवा से ही खुला होगा, पर फिर फिर वो दो आँखें नज़र आयी , कुछ पल तक तो वो मुझे देखती ही रही, फिर  ज़रा सा और दरवाज़ा खोला , बिलकुल ज़रा सा। 

मैंने हथेली से इशारा कर के बस अपनी और बुलाया ही था कि वो झट से पूरा दरवाज़ा खोल कर सीधा मेरे मेज़ के पास आ खड़ी हो गयी, थी तो ८-९ साल कि ही मगर उन पन्नों पर मेरे लिखे हुए शाब्दों को ऐसे देख रही थे मानो कि जायज़ा ले रही हो। 

बेटे क्या नाम है आपका ?
उसने मेरी तरफ मुड़ कर देखा तक नहीं
बेटे क्या नाम है ?
बेटे ?
वो मेरी नोटबुक कि तरफ ही देखे जा रही थी , मैंने अपना हाथ उसकी कोहनी पर रखा और उसे हल्का सा झंजोरा
बेटे क्या नाम है आपका ?
उसने अपना चेहरा तुरंत मेरे चेहरे के तरफ घुमाया और मुस्कुराने लगी मैंने फिर पुछा
क्या नाम है बेटा ?

वो अब भी मुस्कुरा रही थी, मुझे कुछ अजीब सा  लगा , काफी देर हो गयी थी उसने कुछ भी नहीं कहा था बस, मुस्कुराए जा रही थी, मेरे मन में एक डर घर कर गया, कहीं ???

नहीं ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने डरते डरते पेन हाथों में उठाई, कॉपी का एक पन्ना पलटा।
वो इस तरह से मुझे देख रही थी जैसे उसे पता हो कि मैं क्या करने वाला हूँ, मैंने धीरे धीरे उस पलटे हुए पन्ने पर लिखा  
"तुम्हारा नाम क्या है बेटा " ?

बस ट  पर आ कि मात्र लगी ही थी कि उसने एक हाथ से मेरी ठुड्ढी अपने चेहरे के तरफ घुमाई  और अपने दोनों हाथों से अपने होठों कि तरफ इशारा किया और मुस्कुराने लगी
 "ख़ुशी" ?
उसने अपने दोनों हाथ सर पर रखे  जैसे मैंने कोई बड़ी बेवकूफ़ी कर कि हो और फिर से दोनों हाथों को होठों के पार ले जाकर वही इशारा किया
 "हंसी" ?  अरे हाँ।   "मुस्कान"

मेरे मुस्कान कहते ही उसकी मुस्कान  हंसी में बदल गयी, मैंने मुस्कान उस नोटबुक पर भी लिख दिया, ये सोच कर शायद कि उसने मेरे होंठ सही पढ़े  हैं, वो अपना नाम उस नोटबुक पर लिखा देख और खुश हो गयी।

पन्नों , मेरे और उसके बीच इसी तरह कुछ देर तक बातें हुई , मैंने एक नयी नोटबुक निकाली और उस पर उसका नाम लिख दिया और पहले पन्ने पर लिखा " तुम्हारा नाम क्या है " वो बड़ी तेज़ थी, समझ गयी कि मैं उससे उसकी भाषा सीखना चाहता हूँ। उसने फटाफट इशारों से मुझे समझा दिया, मैंने उन्ही इशारों को फ़िर से दोहराया , और उसने अपने हाथ अपने होठों कि तरफ ले जाकर इशारा कर के जवाब भी दिया, फिर हम दोनों काफ़ी देर तक हँसे।

वो इसी तरह रोज़ आती , रोज़ मुझे कुछ नया सिखाती। मैं उसके लिए कुछ किताबें ले आया था, शाम को कुछ देर के लिए वह आती उन किताबों  में जाने क्या ढूंढती , मेज़ पर रखे हुए पेनों से खेलती और मुझे अपनी भाषा में रोज़ कुछ नया सिखा जाती । ये सिलसिला करीब डेढ़ महीने तक चलता रहा , हम अच्छे दोस्त बन गए थे, वो शाम को रोज़ आकर अपने दोस्तों के बारें में बताती , किताबों में तस्वीरें देखती कुछ देर बैठती और चली जाती।   मैं रोज़ उस से एक चीज़ सीखता , उसको दोहरा कर उसको दिखाता , और वो सर हिला कर हंसती। एक अलग ही दुनिया हो गयी थी हम दोनों कि, मुझे ये एहसास हो चूका था कि वो क्यों इस तरह मेरे करीब आ गयी थी , सारी दुनिया उसे कुछ न कुछ सीखाने में लगी हुई थी , और एक मैं था जो उससे सीखता था अजीब सा लगता था कि चुप रह कर भी वो कितना कुछ बोल जाती थी 

मैं करीब करीब उसकी भाषा में बहुत कुछ सीख गया था, कभी जब अकेला होता हो वो नोट बुक उठाता और हर पन्ने पर लिखी हुई बातों को अपने हाथों से दोहराता , और फिर जब वो शाम को आती हम दोनों के हाथ आपस में बातें करते , और हम दोनों भी। 

ये उस दिन कि बात है , दफ्तर से आते आते ज़रा सी देर हो गयी, ज़ोरों कि बारिश शुरू हो चुकी थी , सड़कें नदियाँ हो चुकीं थी , मैं किसी तरह भीगते भागते घर पहुँचा , बिल्डिंग के नीचे एक टेम्पो खड़ा था, किसी का घर का सामान था शायद , कोई दूसरे शहर जा रहा था , करीब आठ दस लोग और भी खड़े थे।  

ठण्ड से बदन कांप रहा था , इसलिए मैं जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ते हुए घर कि और बढ़ा, गीले कपड़ों में ज्यादा रहूँगा तो बुखार आ जाएगा , उसके घर के दरवाज़े पर आज ताला लगा हुआ था , कहीं बाहर गए होंगे शायद। घर आकर तुरंत कपडे बदले , गैस पर चाय रखी और तौलिया सर पर रगड़ते हुए खिड़की के पास आया , बाहर वो टेम्पो अब गेट के पास खड़ा था , फिर देखा उसके पीछे एक टैक्सी भी खड़ी थी, टैक्सी के पीछे वाली खिड़की से कोई हाथ हिला रहा था , कुछ अजीब सा लगा क्यों कि वो जो भी था अपने दोनों हाथ हिला रहा था। 

मैंने तौलिया बिस्तर पर फैंका , और दोनों हाथ खिड़की के उस भीगते फ्रेम पर रख कर उस कार कि तरफ देखने लगा , 

ये वही है , ये वही है , पर यूं अचानक इस तरह जाना ??

मेरा ध्यान फिर उस कार कि खिड़की पर गया, फिर वो चेहरा सामने आया , बारिश में भीगता हुआ, वो मेरी ही खिड़की कि तरफ देख रही थी , वो जब नहीं देख रही थी तब भी वो हाथ मेरी खिड़की कि तरफ ही इशारे कर रहे थे , उसने मुझे देख लिया था, वो वही इशारे बार बार दोहरा रही थी , मैंने अपना चेहरा थोडा और बाहर निकाल कर समझने कि कोशिश कि। एक तो बारिश कि उन टकराती बूँदो से मेरी आँखें ठीक से खुल नहीं रही थी , और वो जो इशारे कर रही थी वो मैं समझ नहीं पा रहा था।  

उसने वो मुझे सीखाया नहीं था,  मैं भी क्या जवाब देता , एक हथेली बाहर निकाल कर हिलाता रहा, पर वह अब भी वही इशारा कर रही थी , जाने क्या कहना चाहती थी , जाने क्या बताना था उसको , बाल पूरे माथे से चिपक गए थे , मैं भी फिर से भीग गया था। 

फ़िर कार के साइलेंसर से धुंआ उठा , मैं तुरंत मुड़ कर नीचे कि तरफ दौड़ा , तौलिया उठाने का मतलब नहीं था , मैं उससे कहीं ज्यादा गीला था। नीचे पहुँचा तो कार गेट तक पहुँच चुकी थी , सब शीशे बंद हो चुके थे अब , मैं बस खड़ा खड़ा हाथ ही हिलाता रहा , कार के गुज़र जाने के बाद भी। फिर हलके हलके क़दमों से लौटने लगा , वो क्या कह रही थी , क्या इशारे कर रही थी , मुझे सीखाया भी तो नहीं था , मुझे सीखाया भी तो नहीं था /

कुछ तो कहना चाहती थी , कुछ तो। 

दरवाज़े के पास पहुंचा तो देखा , कि एक पन्ना पड़ा हुआ है नीचे , किसी ने शायद दरवाज़े के नीचे से सरका दिया होगा , जल्दी में था इसलिए पहले ध्यान नहीं गया , हल्का सा भीग गया था , मैंने पलटकर देखा उस पर एक गोल चेहरा बना हुआ था , हँसता हुआ।  

मैं हल्का सा मुस्कुराया, आँखें पोंछी और वापस खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया, चाय गैस पर पड़ी पड़ी जल चुकी थी , और मैं खिड़की पर खड़ा खड़ा।  

कई साल हो गए हैं अब, वो नोट बुक अब भी संभाल कर रखी हुई है , और वो पन्ना भी उस नोटबुक के अंदर रखा हुआ है 

मैं आज भी ये सोचता हूँ जाने वो उस दिन क्या कहना चाहती थी , मैं आज तक जान नहीं पाया पर मैं
जब भी कभी उदास सा हो जाता हूँ , वो पन्ना उठा कर देखता हूँ , वो गोल चेहरा मुझे देख कर आज भी मुस्कुराता है , और उसे देख कर मैं भी। 

     "मुस्कान "




Pic From:
http://www3.nd.edu/~halftime/pictures.html

11 comments:

Saurabh said...

क्या कहने भाई! हर मंज़र को महसूस करवा देते है आप और शायद हर कोई अपना canvas भी बना देता होगा ऐसा बेहतरीन पढ़ते हुए !

Keep Writing :-)

Unknown said...

Dil ko chhu gye hai

Unknown said...

Will wait for Muskaan 2

Anonymous said...

बहोत खूब… कलम के जादूगर है सर आप… पढ़ते-पढ़ते ही सारा दृश्य चल चित्र की भाँती आँखों के सामने तैर गया ।
@hurdangi

Unknown said...

main to kahoonga ki agar abhi tak likha hua publish nahi hua hai to koshish kare publish jarooru kareye... bahut hi achha likhte hai.

Unknown said...

bahut umdaa likhte hain aap

Unknown said...

Bahut sundar

Unknown said...

सराहनीय....

NEERAJ said...

बहुत बढ़िया समय गुजारा मैने भी मुस्कान के साथ अविस्मणीय पल
आँखे भर आई।

Unknown said...

Bahut acha likha hai, puri kahani nazar aagaye.

Abhay Soni said...

प्रेमचंद जी आपके क्या कहने आप बेमिसाल हो पुरी फ़िल्म ही दिखा दिया आपने शब्द नही है आपके लिए