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Friday, January 24, 2014

वो ऐसे पल रहे थे

खुद को खुदा के बहुत पास महसूस किया है मैंने
 तेरे साथ बीते, वो ऐसे पल रहे थे

 मैंने जब भी घर से बाहर कदम रखा है तो देखा है
 पल्लू उँगलियों में दबाये, तेरे हाथ आँख मल रहे थे

दिवाली होली पर जब हम खोये रहे अपनी मस्तियों में
रसोई में हाथ उसके, गुजिए तल रहे थे

तुम ना जाने कब के सो गए थे उसकी गोद में
उसके हाथ तुम्हारे पीठ पर, तब भी चल रहे थे

 कल जब मैं भीड़ में अकेला चल रहा था माँ
 पैरों को जाने क्यों, रास्ते खल रहे थे

तेरा हाथ सर पर रहता है तो रौशनी सी रहती है
वरना रोज़ सूरज डूबता था, रोज़ दिन ढल रहे थे


Pic From
http://www.google.co.in/imgres?imgurl=&imgrefurl=http%3A%2F%2Ffineartamerica.com%2Ffeatured%2Findian-mother-rosane-sanchez.html&h=0&w=0&sz=1&tbnid=aV9-F73waljB4M&tbnh=215&tbnw=234&zoom=1&docid=nnGIxZYboUYg6M&ei=oV7hUrLiDMeBrQf8ooGABg&ved=0CA4QsCUoBA

6 comments:

Manjusha said...

It's beautiful :)... after reading this poem.. remembering my mom now :).. Missing her dearly!!!

Puranee Bastee said...

बहुत ही मार्मिक
@PuraneeBastee

Mahesh Haul said...

मस्त लिखा है मिथिलेष साब

Unknown said...

Bahuuuut khoob likha h

Mukta said...

Guru You are Superb .. Har lafz sach hai #Speechless

ISI bahane said...

aah mithilesh ji, wah mithilesh ji.