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Saturday, November 28, 2015

आखरी ख़त


रात के करीब साढ़े दस बज चुके थे, मैं चैनल बार बार बदल कर देख रहा था ।  हर चैनल पर प्लेन का जलता हुआ मलबा दिखाया जा रहा था।  मैं कॉफ़ी पीते हुए चुपचाप देख रहा था, बहुत दिनों बाद ऐसा कोई  हादसा हुआ था ।  करीब दो सौ के ऊपर लोग मारे गए थे , सब जितने प्लेन में सवार थे, सब।
कितनी दर्दनाक मौत रही होगी, फ़िर सुना कुछ हल्की हल्की सी आवाज़ आ रही थी, ध्यान दिया तो देखा मोबाइल बज रहा था।
सुरुचि ! इस वक़्त ? सुरुचि मुझे क्यों फ़ोन कर रही है ? बहुत अजीब सी बात थी।

हेल्लो !!
फ़ोन के उस ओर से सिर्फ़ रोने की आवाज़ आ रही थी, मैं हेल्लो हेल्लो कर रहा था और उसका रोना रुक ही नहीं रहा था।
सुरुचि क्या हुआ, तुम रो क्यों रही हो ?  हुआ क्या है ?
उत्पल किधर है,  हुआ क्या है, सब ठीक है ना ?
राजीव, उत्पल, उत्पल उस प्लेन में, वो कहते कहते रो पड़ी, फ़ोन नहीं लग रहा है राजीव, मुझे बहुत डर लग रहा है राजीव।
क्या हुआ है सुरुचि मुझे ठीक से बताओ कहाँ है उत्पल, तुम रो क्यों रही हो ?
राजीव, उत्पल कंपनी के US प्रोजेक्ट के लिए आज उसी प्लेन से गया है।
मुझे कुछ पता नहीं चल रहा है राजीव, उसका फ़ोन नहीं लग रहा है और एयरपोर्ट वाले कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।
वो रोते रोते सब बता रही थी,

तुम चिंता मत करो सब ठीक होगा , मैं पता कर के तुम्हें वापस फ़ोन करता हूँ
डरो मत , सब ठीक होगा।

मैंने एयरपोर्ट पर दो तीन फ़ोन किये, सुरुचि का शक सही था।
मैंने टीवी बंद किया और सहम कर अपने सोफ़े पर बैठ गया, उत्पल को मैं कॉलेज के ज़माने से जानता था, मेरा पक्का यार था, मेरे भाई जैसा था।
कॉलेज के दिन ज़हन में आने लगे , उत्पल, मैं और सुरुचि साथ में ही तो थे।
मैं सुरुचि को बहुत चाहता था, और  मुझे लगता था की वो भी मुझे चाहती है, पर फ़िर एक दिन उत्पल मेरे पास एक कार्ड लेकर आया और उसने कहा की वो कल सुरुचि को वो कार्ड देने वाला है।

कार्ड बहुत सुन्दर था, और उस पर लिखा था " आई लव यू सुरुचि "

उस दिन के बाद  मैंने अपनी ज़िन्दगी को अलग दिशा में पलट दिया, उन दोनों के लिए बहुत खुश था मैं।
वो  बात जो अंदर थी , अंदर ही रहने दी मैंने।

आज जाने क्यों ये सब याद आ रहा था, जाने क्यों ?

आज मेरा यार, मेरा दोस्त, मेरा भाई नहीं रहा।
मैं उस प्लेन में लोगों की दर्दनाक मौत के बारे में सोच रहा था, मुझे कहाँ मालूम था की मेरा दोस्त भी उसी में से एक होगा।

एक महीना बीत गया था अब, मैं दो तीन दफ़े सुरुचि से मिल आया था, उसके भी आँसू अब सूखने लगे थे पर उसकी ख़ामोशी, उसकी वो पथ्थर बन चुकी आँखें, सिर्फ़ आँठ महीने ही तो हुए थे उनकी  शादी को।

फ़िर एक दिन, घर में उसी सोफे पर बैठा था की दरवाज़े के बगल में पड़े हुए ख़तों के ढेर पर नज़र गयी।
इस सब भाग दौड़ के बीच, वक़्त ही नहीं मिला।
मैं एक एक कर के सब लिफ़ाफ़े खोलने लगा, क्रेडिट कार्ड के बिल, फ़ोन के बिल, कुछ मैगज़ीन।
फ़िर एक खत देखा तो सकपका गया, लेटर उत्पल के ऑफिस से आया था।

जिस दिन वो हादसा हुआ था उसके एक दिन पहले ही पोस्ट हुआ था, मैंने फ़टाफ़ट, लिफ़ाफ़ा खोला, अंदर सिर्फ एक ही पन्ना था, उत्पल ने कुछ लिखा था।

लिखा था

"जब तक तुम्हें ये लेटर मिलेगा मैं बहुत दूर जा चूका हुंगा …………


मैंने फ़िर से पढ़ा की शायद मैंने कुछ गलत पढ़ लिया हो, पर मैंने पहली दफ़ा जो पढ़ा वो ठीक ही था, क्या राजीव को पता था की ये सब होने वाला है ?
ये सब क्या है ? उसे कैसे पता की प्लेन क्रैश होने वाला है।


राजीव ,
मेरे दोस्त , मेरे भाई , जब तक ये लेटर तुम्हें मिलेगा मैं बहुत दूर जा चूका हूँगा, मुझे माफ़ कर देना, कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो शायद मैं तुमसे आँख मिला कर नहीं कह पाता इसलिए लिख रहा हूँ। मैंने अपनी ज़िन्दगी से जुडी हर चीज़ तुम्हें बताई है, सब कुछ तुम जानते हो पर एक चीज़ है जो मैंने तुमसे, सुरुचि से सब से छुपा कर रखी।  तुम जानते हो मैं कॉलेज के समय से ही सुरुचि से कितना प्यार करता हूं, तुम्हे शायद न पता हो मैं ये भी जानता था की तुम भी उसे चाहते हो।  राजीव हमारी शादी के कुछ ही महीनों बाद हमारे बीच चीज़ें बदलने लगी, जो प्यार था वो दूरियों में तब्दील होने लगा होने लगा।  मैंने बहुत कोशिश की , सब कुछ संभालने की पर ज़्यादा कुछ हो न सका।  इसी बीच मेरी मुलाक़ात सिमोन से हुई, वो हमारे ही ऑफिस के अमेरिका वाले ऑफिस में काम करती है, आगे तुम समझ ही गए होंगे।  हम दोनों मिल कर अब अमेरिका में कुछ नया शुरू करेंगे, और मैंने तय कर  लिया है की मैं अब कभी वापस नहीं लौटूंगा।  इसके बाद कभी तुमसे बात भी नहीं होगी, मैं ये सब सुरुचि को सीधा नहीं बताना चाहता था, इसलिए तुम्हे ये खत लिख कर जा रहा हूं, फ़ोन पर ये सब शायद बोल  नहीं पाता, तुम्हे मेरा ये आखरी काम करना पड़ेगा, सुरुचि से मैं माफ़ी मांगने के भी लायक नहीं हूं।
पर अगर हो सके तो, तुम मुझे माफ़ कर देना।

तुम्हारा दोस्त
उत्पल

मैं उस खत को हाथों में लिए कुछ देर तक दीवार ही तांकता रह गया, उत्पल की मौत के सदमे से धीरे धीरे उबरा ही था की अब ये खत ।  वहाँ सुरुचि का रो रो के बुरा हाल है और अब मैं उसे से सब ...  ये सब कैसे , सब ठीक तो लग रहा था।
पर उसे ये जानना ज़रूरी है की उत्पल उसके आँसुओं के लायक नहीं था,  उसे ये जानना बहुत ज़रूरी है,  उसे बताना ही पड़ेगा।
मैंने तुरंत अपनी कार निकाली और उस खत को उसी लिफ़ाफ़े में वापस डाल कर सुरुचि के घर की ओर निकल पड़ा।
अब मेरा सदमा हल्के हल्के गुस्से में बदल रहा था, उसे ये सब करना ही था तो फिर सुरुचि को अपनी ज़िन्दगी में लाया ही क्यों ?
मैंने खुद अपना प्यार खुद में मर जाने दिया, और उसने ये किया ?

गाड़ी नदी पर बने उस पुल पर से गुज़र रही थी और ये सब बातें ज़हन में चल रहीं थी, मन इतना परेशान हुआ की मैंने गाड़ी पुल के एक ओर लगा दी और बाहर निकल कर नीचे उस बहती नदी को देखने लगा।

उत्पल को ऐसा नहीं करना चाहिए था, ये बाद मैं अपने ज़हन में हज़ार दफ़े दोहरा चूका हुंगा।
सुरुचि आज क्या क्या याद कर रही होगी उसके बारे में और उसने ...
उसे ये सब पता चलेगा तो टूट जाएगी वो , जिस याद के सहारे वो शायद अपनी सारी  ज़िन्दगी गुज़ारने  की सोच रही है, वो याद शायद नफ़रत में बदल जाए ।
जाने उसकी क्या हालत होगी जब वो ये ख़त  पढ़ेगी ?  मैं क्या कह कर उसे ये खत दूंगा ? शायद ये सदमा उसकी मौत के सदमे से भी बड़ा होगा।

ये सब मैं क्या सोच रहा हूं, ये मुझे क्या हो रहा है, सुरुचि के प्यार के साथ ये अन्याय होगा।
उत्पल ने जो किया गलत किया पर उसका वजूद जो सुरुचि के साथ ज़िंदा है , मैं उसे मार नहीं सकता।
वो जैसा उसे सोचती थी, उसकी याद वैसी ही ज़िंदा रहना ज़रूरी है।
मैं ये कर नहीं सकता।

मैं कार से वो खत ले आया, आखरी बार सिर्फ़ वो पहली लाइन पढ़ी जो उसने लिखी थी

"राजीव , मेरे दोस्त , मेरे भाई.. "

फ़िर आसमान की ओर देखा और हल्के से फुसफुसाया ,

"उत्पल , मेरे दोस्त मेरे भाई "
फ़िर मैंने उस ख़त के छोटे छोटे टुकड़े किये और उन्हें नीचे पानी में फेंक दिया।
एक छोटा सा टुकड़ा मेरे चेहरे से आ लगा, मानो जैसे पूछ रहा हो की ये मैं क्या कर रहा हूँ, मैंने उसे चेहरे से अलग किया और बहा दिया।

उत्पल ने जो किया उसे शायद उसकी उसे बहुत बड़ी सज़ा मिल चुकी थी, मैं उसे फ़िर से एक बार मारना नहीं चाहता था।

उत्पल तुम जैसे थे वैसे ही रहोगे हमेशा।
मैं कार की और वापस लौट आया।

पता नहीं दोस्ती थी या प्यार था , शायद प्यार ही था।



Pic courtesy : http://www.google.co.in/imgres?imgurl=http://41.media.tumblr.com/4f9ec74fb8cd3a9d65e503262000f52b/tumblr_mun16secUR1s7xh5co1_500.jpg&imgrefurl=http://cassie-van-de-berge.tumblr.com/&h=335&w=500&tbnid=UzGtP_jQS_RMKM:&docid=kfo3n0WHf2mdiM&ei=KMFZVsKzLIuAuwSL27vICA&tbm=isch&ved=0ahUKEwjC5_7csLPJAhULwI4KHYvtDokQMwhbKDgwOA

19 comments:

शिखा said...

बहुत खूबसूरत कहानी ...बिलकुल सजीव चित्रण

Vidisha Barwal said...

bahaut bahaut bahaut sundar kahaani!

हिमाँशु अग्रवाल said...

अत्यंत भावपूर्ण रचना। पढ़ाने के लिए धन्यवाद।

Karan ki kalam se said...

भावनात्मक रूप से पूरा पूरा जुड़ाव हो गया इस कहानी से.. अद्भुत !!

Unknown said...

मिथिलेश सर शब्द नहीं मिल रहे तारीफ़ के

पूर्णतया सजीव चित्रण

Unknown said...

मिथिलेश सर शब्द नहीं मिल रहे तारीफ़ के

पूर्णतया सजीव चित्रण

Unknown said...

बहोत खुब सर!!

Unknown said...

बहोत खुब सर!!

Unknown said...

Heart touching...... Nice
😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢

Ajeet Sharma said...

भाईजी...बहुत ही सुन्ददर..बेहतरीन।

Gillzronics said...

Heart touching Story. Beautiful..

Ravi said...

Beautiful story. And seems real.. nice one. Thanks

Unknown said...

Great story....:)

Webseries review said...

Nice sir

जन समस्याओं को सरकार तक पहुँचना ☺ said...

Kya yahi pyar hai........

जन समस्याओं को सरकार तक पहुँचना ☺ said...

Kya yahi pyar hai........

Unknown said...

Very Nice Story

ISI bahane said...

awesome. keep writing. god bless you.

Abhay Soni said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने इकदम सजीव चित्रण किया है आपने