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Sunday, May 19, 2013

आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....


जाने क्या ढूँढने खोला था उन बंद दरवाजों को ....
अरसा बीत गया सुने उन धुंधली आवाजों को ..
यादों के सूखे बागों में जैसे... एक गुलाब खिला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....

कांच की एक डिब्बे में कैद ... खरोचों वाले कुछ कंचे ... 
कुछ आज़ाद इमली के दाने .... इधर उधर बिखरे हुए .... 
मटके का इक चौकोर लाल टुकड़ा... पड़ा बेकार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....

एक भूरी रंग की पुरानी कॉपी... नीली लकीरों वाली ... 
कुछ बहे हुए नीले  अक्षर... उन पुराने भूरे पन्नों में .... 
स्टील के जंक लगे शार्पनर में पेंसिल का एक छोटा टुकड़ा .... गिरफ्तार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....

पुराने मोजों की एक जोड़ी... सुराखों वाली ....
बदन पर मिटटी लपेटे एक गेंद पड़ी है  .....
लकड़ी का एक बल्ला भी है जो नीचे से छीला छीला है ..
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....

एक के ऊपर एक पड़े ..माचिस के कुछ खाली डिब्बे ...
 पीला पड़ चूका झुर्रियों वाला एक अखबार पड़ा है ...
बुना हुआ एक फटा  सफ़ेद स्वेटर .. जो अब नीला नीला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....

गत्ते का एक चश्मा है ... पीली पस्टिक वाला ....
चंद खाली लिफ़ाफ़े बड़ी बड़ी डाक टिकिटों वाले ...
उन खाली पड़े लिफाफों में भी छुपा एक  पैगाम मिला है 
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....


कई बरसो बीत गए.. आज यूँ महसूस हुआ 
रिश्तों को निभाने की दौड़ में ...
यूँ लगा जैसे कोई बिछड़ा.... पुराना यार  मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .... पुराना इतवार मिला है ....





27 comments:

Vidisha Barwal said...

vaah!
"स्टील के जंक लगे शार्पनर में पेंसिल का एक छोटा टुकड़ा .... गिरफ्तार मिला है ...."

awesome poem!

...Radha said...
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...Radha said...

Dil ko choo janewali is lajawaab kavita ke liye aapka bahut bahut shukriya! Hamesha yaad rahegi aap ki ye kavita, aur boodhhi almari mein kahin band hua mila wo purana itvaar...
Thank you for this one!

Unknown said...

Us kitab ke andar ek sukha hua gulaab mila..

aaj us budhi almari kee andar..puranan itwar mila

Karan Vinayek said...

Papa ki vo ruki hui ghadi,
Ik sukhi hui syahi wala kalam mila hai,

Aaj uss budhi almari ke andar,
Purana itvaar mila hai...

Anonymous said...

Absolutely beautiful...

Anonymous said...

Good Mithelesh

शापित said...

Mithelesh ji!

Sundar Kavita Hai!
Likhate rahiyega!

Unknown said...

its nice n touchy....
liked it

Nirmal said...

Excellent poem sir!

Pooja said...
This comment has been removed by the author.
Pooja said...

You are magician of words. Nobody can describe such kind of deep thoughts in an easy way. I am already following you on twitter and I must say you are great writer.

Thanks for sharing your poems.

shivali said...

Wah bahoot khoob...

chintan said...

उमदा
Botpoems.blogspot.in

Anonymous said...

रोचक, सटीक, भावपूर्ण, और बेहद उम्दा।

Unknown said...

Wonderful, Mithlesh!
U are lucky in having the ability to write down ur thoughts. Glad to know you.(lseema12 )

Unknown said...

Wonderful, Mithlesh!
U are lucky in having the ability to write down ur thoughts. Glad to know you.(lseema12 )

Unknown said...

Thanks for the memories.

शिखा said...

इतवार तो वही हैं..लेकिन कहीं कुछ कमी है...
बहुत खूबसूरत शब्द ...
हमेशा खुश रहिए

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Ravi said...

Waah. Mitesh. . Beautiful words.. was following u on twitter and now come here. You are brilliant writer

Unknown said...

Superb... brilliant... awesome

Unknown said...

इश्क़ का फिर कोई तलबगार मिला है
वो खोया हुआ पुराना प्यार मिला है
वीरानो में फिर आज एक फूल खिला है
उस बूढ़ी अलमारी के अंदर पुराना अखबार मिला है

Unknown said...

पुराने खत मिले है आज घर में
के जैसे दिऐ से जल गये है खण्हर में....

Unknown said...

Heart touching. .

Hemant Joshi said...

उमदा और भावनाओसे गहरा

Unknown said...

Where can I find English transliteration please