मैं तुम्हे जानता नहीं .... कभी तुम्हे देखा नहीं ..... मैं तुम्हारा नाम तक नहीं जानता ... अनामिका .....
पर देखता हूँ ... रोज़ देखता हूँ अपने ज़हन में तुम्हे .... उस अस्पताल के पुराने बिस्तर पर पड़ी हो तुम .....
तुम आखें नहीं खोलती ... हाँ पर कभी कभी पलकें ज़रूर झपकाती हो ....
मैं नहीं जानना चाहता ये हाल तुम्हारा कैसे हुआ .... किसने किया .....
वादा करो तुम मुझसे जीने का ...... और उस वादे से ... फिर तुम मुकरना नहीं अनामिका .....
तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
कल चौराहों पर भीड़ भी लगी थी .... लोग चिल्ला रहे थे ..... चीख रहे थे ...... तुम्हारे लिए .....
तुम बेखबर रहीं होंगी उन सब से ..... आवाज़ तुम तक पहुँचती जो नहीं ......
मैंने उन लोगों की आखों में तुम्हे देखा है ..... मैंने उन आवाजों में तुम्हे सुना है .....
बस लब हिलाते रहना तुम ज़रा ज़रा से .... पलकें उठाने से तुम डरना नहीं अनामिका ......
तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
मैं रोज़ सुबह उठ कर ..... रिमोट उठाने से डरता हूँ .....
इस डर से कहीं .... तुमारी मौत की खबर ना आ जाए ....
मैं नहीं जानता उन्हें सजा क्या होगी .... कब होगी ..... और सच कहूँ तो जानना भी नहीं चाहता .....
बस तुम ठीक हो जाना ... मुस्कुराना फिर से ..... और सब बातों का मुझे कुछ करना नहीं अनामिका .....
तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है अनामिका ......
पर तुम्हारे जिस्म में मौजूद हर दर्द को .... मैं महसूस करता हूँ अनामिका .....
मैं भी रात में सो नहीं पाता तुम्हारी तरह .... मुझसे अब घर की बत्तियाँ बुझती नहीं ......
मैं खुद को अस्पताल में .... तुम्हारे बिस्तर के बगल में पड़े .... उस स्टील के स्टूल पर बैठा हुआ पाता हूँ .....
मुझे दूर से वो आँसूं भी नज़र आता है .... जो तुम्हारी आँख के कोने से ..... उस सफ़ेद तकिये तक जाता है ......
बह जाने दो उन आँसुओं को .... पर तुम कहीं ठहरना नहीं अनामिका .....
तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
तुम साँसे लेते रहना ..... उंगलियाँ हिलाते रहना ...... पलकें झपकते रहना ......
गुज़र जाएंगे ये दर्द भरे लम्हे जल्द ही ...... पर तुम गुज़रना नहीं अनामिका .....
तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
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तुम मरना नहीं अनामिका .... तुम मरना नहीं अनामिका .....
pic from : http://www.examiner.com/article/emergency-use-of-antiviral-iv-medication-for-h1n1-swine-flu-symptoms-approved-by-fda
14 comments:
संवेदनशील, मार्मिक चित्रण
Goosebumps while reading the whole poem! Sigh
बहुत मार्मिक बहुत सवेंदनशील, पर वह बच न सकी , हम कुछ ना कर सके , यह दु ख सदा रहे गा
True Tribute
बहुत मार्मिक.....लाजवाब
Oh My Gawd.. Yes i read it too late...
still... cud'nt control my tears...
touching.. :(
Bahut Bhavuk chitran!
I have not seen a better expression than this. Truly beyond imagination. Couldn't control reading it and sharing with friends. :)
I have not read a better expression of this case than this. Truly beyond imagination. Couldn't control commenting and sharing with friends. Well Written :)
acha hai sahab
Sigh!
और वो बची नहीं!
"मुझसे अब घर की बत्तियाँ बुझती नहीं.."मन एक बार फिर उदास हो गया.
बोहोत उम्दा
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