Wednesday, October 31, 2018
थर्ड AC - भाग - १
Monday, October 15, 2018
मंदिर
मेरे दफ़्तर का रास्ता मंदिर के सामने से गुज़रता था, वह बाहर बैठी रोज़ मुझे देख कर मुस्कुराती, एक हाथ में गेंदे का हार लिए तमिल में कुछ कहती , मैं मुस्कुराते हुए "नहीं अम्मा" कहते हुए हाथ दिखाता हुआ निकल जाता ।
यह रोज़ होता था, वह रोज़ हाथ में फूल लिए कुछ बोलती, मैं रोज़ मुस्कुराता हुआ निकल जाता ।
बचपन से कभी खुद मंदिर नहीं जाता था, माँ बहुत ज़िद करती थी पर प्रसाद के अलावा मुझे कोई और कारण नज़र नहीं आता था। फिर एक दिन माँ का मैसेज आया , व्हाट्सएप्प पर
"बेटा मंदिर में फूल चढ़ाना"
माँ को ठीक से मोबाइल इस्तेमाल करना भी नहीं आता , और आज न जाने कहाँ से वॉट्सएप सीख कर वह मुझे ये लिख रही है ...
"टिंग" , फिर मैसेज आया
"तुम्हारी माँ को अच्छा लगेगा"
माँ भी ना ...
अगले दिन शाम को दफ्तर से लौटते समय कार्तिक साथ आया, मंदिर पर बाइक रोकी पर वह अम्मा वहाँ नहीं दिखी। मैंने उसकी बगल में बैठने वाली से फूल ले लिए, वह मुझे पहचान गई थी।
वापस बाहर निकलते समय उसी फूल वाली से कार्तिक को पूछने को कहा
"इससे पूछो वो अम्मा कहाँ हैं "?
कार्तिक ने उससे तमिल में कुछ बात की
"वह अम्मा अब नहीं रही" !!
"क्या" ??
मैं छह महीने तक उसे देख मुस्कुराता हुआ निकलता रहा और आज जब उससे मिलना था तब ...
कुछ सूझा नहीं क्या जवाब दूं ? खैर,भारी मन से वापस बाइक की ओर लौटने लगा, फिर कुछ याद आया
"कार्तिक वह अम्मा रोज़ मुझे तमिल में कुछ कहती थी"
"ज़रा उस औरत से पूछो तो, क्या कहती थी" ?
कार्तिक वापस बाइक से उतर कर उस औरत के पास गया और मेरी ओर इशारा करते हुए उससे तमिल में कुछ बात की
फिर वापस आकर बाइक पर बैठ गया,
"क्या कहा उसने , अम्मा रोज़ मुझे क्या कहती थी" ?
उसने मेरे कंधे को थपथपाते हुए कहा
"कुछ नहीं, वह बस ये कहती थी कि"
""बेटा मंदिर में फूल चढ़ाना, तुम्हारी माँ को अच्छा लगेगा .."
#mbaria
13 अक्टूबर 2018