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Friday, January 24, 2014

वो ऐसे पल रहे थे

खुद को खुदा के बहुत पास महसूस किया है मैंने
 तेरे साथ बीते, वो ऐसे पल रहे थे

 मैंने जब भी घर से बाहर कदम रखा है तो देखा है
 पल्लू उँगलियों में दबाये, तेरे हाथ आँख मल रहे थे

दिवाली होली पर जब हम खोये रहे अपनी मस्तियों में
रसोई में हाथ उसके, गुजिए तल रहे थे

तुम ना जाने कब के सो गए थे उसकी गोद में
उसके हाथ तुम्हारे पीठ पर, तब भी चल रहे थे

 कल जब मैं भीड़ में अकेला चल रहा था माँ
 पैरों को जाने क्यों, रास्ते खल रहे थे

तेरा हाथ सर पर रहता है तो रौशनी सी रहती है
वरना रोज़ सूरज डूबता था, रोज़ दिन ढल रहे थे


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http://www.google.co.in/imgres?imgurl=&imgrefurl=http%3A%2F%2Ffineartamerica.com%2Ffeatured%2Findian-mother-rosane-sanchez.html&h=0&w=0&sz=1&tbnid=aV9-F73waljB4M&tbnh=215&tbnw=234&zoom=1&docid=nnGIxZYboUYg6M&ei=oV7hUrLiDMeBrQf8ooGABg&ved=0CA4QsCUoBA

Saturday, January 4, 2014

मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है....

मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है
कागज़ों से दोस्ती टूट जाती है।
कलम मुँह फुला कर मेज़ के उस तीसरे दराज़ में छुप जाती है
झुका सा बंद पड़ा वो स्टडी लैंप मुझ पर चीखता चिल्लाता है
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है

मेज़ के नीचे पड़ा वो स्टील का महंगा कूड़ेदान , कुछ खाली खाली सा है
उँगलियाँ बस एक दूसरे को ज़रा ज़रा सा छू कर ही खुश हैं
मैं चुप चाप बालकनी में बैठे उन गाड़ियों को आते जाते देखता हूँ
उन फड़फड़ाते पन्नों का फहुसफुसाना,हॉर्न के शोरों में दब सा जाता है
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है

मैं जिसे रोज़ ज़रा ज़रा सा दिल से निकाल कर कागज़ों में भरता हूँ
वो यादें जो कागज़ों के साथ मिल कर मुझ पर हँसती हैं
मैं उन कागज़ों को ज़हन में ही चुप चाप जला देता हूँ
पर ऐशट्रे में पड़ी उन बुझी हुई सिगरेटों को जाने कैसे पता चल जाता है
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है




Pic From : http://blenderartists.org/forum/showthread.php?178447-Old-Desk