न जाने ये ज़िन्दगी मुझे किस और ले जा रही है..
मंजिल नहीं है फिर भी , राहें दिखा रही है...
साथ नहीं है कोई , पर साथ में है चलना...
बदलते हैं रिश्ते यहाँ , पर खुद को नहीं बदलना..
आखोँ में नहीं हैं नींदें , फिर भी सपने दिखा रही है..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और लेजा रही है...
कभी पंख लगा कर उडूं मैं, कभी ज़मी पर गिर जाऊं..
कभी आईने में देखूं , खुद को नज़र ना आऊं..
ख़ुशी में कभी रुलाती, कभी गम में हसा रही है..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
कहीं रूठता है कोई, कभी छूठता है कोई..
कभी मिलती हैं जन्नतें , कभी लूटता है कोई..
सन्नाटो से कभी डराती, कभी नगमें सुना रही है..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
कभी जानू नहीं किसी को, कभी भीड़ में खो जाऊं..
कभी अपनों पे जां दू मैं , कभी गैरों का हो जाऊं..
दूरियों को कभी मिटाती, कभी फासले बढ़ा रही है ..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
थोड़ी कल की हैं यादें , कुछ कल से उम्मीदें ..
भूले कभी दिल खुद को, कभी याद करे दिन बीते ..
वादों को कभी तोडती, कभी कसमें निभा रही है...
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
ओरों को हसाऊं कभी, कभी आँसू अपने छुपाऊं..
दिल से कुछ कहूँ कभी, कभी होठों से बतलाऊं..
इंसा न बनने दे कभी, कभी खुदा बना रही है...
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
कितने किस्से कितनी यादें , छोड़ चला हूँ मैं यहाँ..
जा रहा हूँ मैं वहाँ , जहाँ जाते क़दमों के निशां..
हर कदम पे एक आहट, और हर आहट पर एक कदम बढ़ा रही है..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
मंजिल नहीं है फिर भी , राहें दिखा रही है...
Photo From: http://www.desibucket.com/sad/alone/
2 comments:
इंसा न बनने दे कभी, कभी खुदा बना रही है...
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
हर कदम पे एक आहट, और हर आहट पर एक कदम बढ़ा रही है..
न जाने ये ज़िन्दगी मुझे , किस और ले जा रही है..
Lovely lines... beautiful poem :)
i cannot stop myseld from commenting. Absolutely loved it. though the last line abt 'aahat n kadam' intrigued me a little. din't quite understand tthat. But other than that- kya baat hai!
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