पत्तू लगभग 30 किलोमीटर पैदल चल चुका था, घुटना अब भी दर्द हो रहा था। सात साथी जो घर से साथ चले थे अब काफी आगे निकल गए थे, 6 बज चुके थे और अंधेरा होने को था।
एक आध किलोमीटर चलने के बाद वो रोड पर बैठ जाता, रोते रोते बड़बड़ाता, "साला कोई रुका नहीं, सब चले गए" फिर अपनी फटी शर्ट से आँसू पोंछता और फिर बड़बड़ाता "घुटने में नहीं मारना था ना" और ज़ोर ज़ोर से रोने लगता।
हुआ कुछ यूं था की घर से पत्तू अपने सात साथियों के साथ निकला था, लॉकडाउन के कुछ दिन तक तो वो वहाँ रुके रहे पर फिर सब ने मिलकर तय किया की घर चले जाते हैं। एक दिन समान उठा कर बस स्टॉप तक भी गए, पर कोई बस नहीं चल रही थी, सो लौट आए।
फिर तय किया की पैदल ही जाना होगा, कुछ दिन लगेंगे पर किराया भी तो बच जाएगा, रास्ते में खाने के कुछ न कुछ इंतज़ाम हो ही जाएगा।
सुबह सुबह 6 बजे सब पीठ पर बैग लटकाए सब निकल पड़े। मोहल्ले के बाहर निकले ही थे की पुलिस ने डंडे बरसा दिए, भगदड़ मच गई, डंडे सभी को पड़े और बहुत पड़े, पीठ, हाथ, पैर, हर जगह। पत्तू की किस्मत थोड़ी ख़राब थी, उसे एक डंडा घुटने पर भी पड़ गया। हैरानी की बात तो यह थी की इन लोगों को ये पता था की ये होगा, बस कब होगा और कहाँ होगा ये अंदाज़ा नहीं था।
किसी तरह वे हाईवे तक पहुँचे और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। जैसे जैसे पत्तू का घुटने का दर्द बढ़ रहा था, वैसे वैसे उसके और उन सात लोगों के बीच की दूरी भी बढ़ रही थी।
आँठ बज चुके थे अब अंधेरा हो चुका था, प्लास्टिक की बोतल में पानी खत्म हो चुका था, उसका मोबाइल डिस्चार्ज हो चुका था, उसका घुटना लगभग जवाब देने को था और अब उसके शरीर में ज़रा सा भी दम नहीं बचा था।
किसी तरह वो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था, तभी दूर एक पुलिस के बैरिकेड की कुछ बत्तियां नज़र आईं, वो घबरा कर वहीं रुक गया। फिर उसने देखा की एक पुलिस की मोटर साईकल की रोशनी उसकी तरफ आ रही है। उसने अगल बगल देखा एक छोटी सी पुलिया नज़र आई, वो किसी तरह लंगड़ाते लंगड़ाते सड़क से उतरा और पुलिया से सट कर खुद को छुपा लिया।
मुँह प्यास से सूख चुका था, अंतड़ियां भूख से दुख रहीं थी, पर डर .... डर इतना हावी था की उसने छुपना ही सही समझा। मोटरसाइकिल ठीक उस पुलिया पर आकर रुकी। उसने छुपते हुए देखा, दो पुलिसवाले डंडा हाथ में लिए इधर उधर देख रहे थे, मोटरसाइकिल की रोशनी में उनकी वर्दी हल्की हल्की नज़र आ रही थी। उसे एक पल के लिए लगा की वो उठ कर उनके पास चला जाए, पर जैसे ही उसने अपना जिस्म हिलाना चाहा, एक पुलिसवाला दूसरे से बोल पड़ा, "छोरा जेसा तो दिखा था, उरे ही खड़ा था", "जाणे दे , जानवर होगा कोई"।
मुँह प्यास से सूख चुका था, अंतड़ियां भूख से दुख रहीं थी, पर डर .... डर इतना हावी था की उसने छुपना ही सही समझा। मोटरसाइकिल ठीक उस पुलिया पर आकर रुकी। उसने छुपते हुए देखा, दो पुलिसवाले डंडा हाथ में लिए इधर उधर देख रहे थे, मोटरसाइकिल की रोशनी में उनकी वर्दी हल्की हल्की नज़र आ रही थी। उसे एक पल के लिए लगा की वो उठ कर उनके पास चला जाए, पर जैसे ही उसने अपना जिस्म हिलाना चाहा, एक पुलिसवाला दूसरे से बोल पड़ा, "छोरा जेसा तो दिखा था, उरे ही खड़ा था", "जाणे दे , जानवर होगा कोई"।
वो सहम कर वापस पुलिया पर टिक गया, आँखें बंद कर अंधेर में बैग के अंदर पानी की बोतल ढूंढने लगा।
दोनों पुलिसवाले वापस बैरिकेड पर पहुँचे, वहाँ कुछ लड़के एक बगल के तंबू में ज़मीन पर बैठ कर खाना खा रहे थे, आँठ बज कर 15 मिनट हो चुके थे, खाने का टाइम था। मोटरसाइकिल से उतर कर एक पुलिसवाला वहाँ बैठे अपने साहब के पास गया, " साब कोई जानवर होगा, छोरो तो ना दिखो उधर, अंधेरो है, कहीं पहले ही किसी गाँव में रुक गो होगो"।
साहब ने गर्दन घुमाई और उन लड़कों की और देखते हुए कहा, "फ़ोन ट्राय करते रहो, ज़्यादा पीछे नहीं होगा, वैसे तुम लोग एक छोटे से लड़के को कैसे पीछे छोड़ आए, शर्म आनी चाहिए, ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज़ है की नहीं"?। साहब ने आवाज़ बढ़ाते हुए गुस्से से कहा ।
साहब कुछ देर तक बैठे बैठे सोचते रहे, फिर उठ कर अपनी जीप की और जाने लगे।
"ओ जितेंदर, लड़कों को खाना ठीक से खिला दियो, और सुबह कुछ पैसे देकर पेट्रोलिंग जीप में बॉर्डर तक छोड़ दियो"
"और हां सुन !!! वो लड़का आए ना रात में अगर, वो क्या नाम है उसका, पत्तू। तो मुझे फ़ोन कर दियो, क्या पता कहीं रुका ना हो, इनके पीछे पीछे ही आ रहा हो"
इतना कह कर साहब ने जीप शुरू की और चले गए।
सुबह पुलिया के बगल में नीचे, वही दो पुलिसवाले खड़े थे।
"अरे जितेंदर, वो ही छोरा दिखे है, बेहोश है शायद, साँसे चल रही है का इसकी ? देख तो जरा ?
साँप वाम्प तो ना काट लिया इसको"।
साँप वाम्प तो ना काट लिया इसको"।
पानी की वो खाली बोतल पत्तू के हाथ में अब भी थी।
Pic from:
https://www.thenewsminute.com/article/transport-shut-covid-19-lockdown-indian-migrant-workers-begin-walking-home-121279?amp
Bole to dil ko chhoo gyi story.
ReplyDeleteEpic
ReplyDeleteSuperb Mithlesh sir
ReplyDeletePaani ki vo khali bottle... Waah waah
ReplyDeleteमहोदय आपके शब्द सीधा दिमाग़ मैं घुस के दिल को चीर जाते है
ReplyDeleteNice informative Article
ReplyDeleteVery Useful …. Thank you very much.
Annika
Bhut bdhiya sir
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