एक लोहे की सलाखों वाली खिड़की है, जिस पर एक पुरानी चद्दर लगी हुई है, उस फटी चद्दर को ये समझा कर वहां टांगा गया है कि वो पर्दा है। ये तथाकथित पर्दा खिड़की के ऊपरी दोनों कोने में लगी दो बड़ी छोटी जंग लगी कीलों पर किसी भीड़ से भरी लोकल ट्रेन में सफर कर रहे एक मुम्बइये जैसे अपने दोनों हाथों पर लटका है ।
ज़मीन पर एक प्लास्टिक की चटाई बिछी है, जो करीब पाँच छह जगह पर सिगरेट के ठूंठों से जलाई गई है, ठीक बीच में एक हिंदी का उम्रदराज़ अख़बार सीना चौड़ा किये लेटा है, हिंदी के उम्रदराज़ अख़बारों की ये पुरानी आदत है कहीं भी फैल कर लेट जाते हैं। उसी अख़बार के ठीक बीच में एक स्टील का छोटा ग्लास बड़ी मुश्किल से अपना बैलेंस बनाए खड़ा हुआ है। एक चौथाई पानी से भरे इस स्टील के ग्लास में , सिगरेट के पाँच छह ठूठों की लाशें पड़ी हैं, जो फूल कर ऊपरी सतह पर तैर रहीं है, कुछ जली हुई माचिस की तीलियाँ भी हैं, जो इन लाशों के नीचे तले में पड़ी हैं , और वो जैसे शाम होती है ना, ठीक उसी तरह , वक़्त के साथ साथ पानी का रंग भी भूरे से और भूरा होता जा रहा है । ग्लास में अब भी इतनी जगह है कि लगभग और दस बारह ठूंठे आराम से आत्महत्या कर लें ।
इसी बिछे हुए अख़बार के एक कोने में कुछ तले हुए लावारिस मूंगफली के दाने पड़े हैं जिनके बदन पर एक बड़ा सा काला निशान है,ये सब अपने झुंड से बिछड़ गए हैं । इन दानों में कुछ नंगे हैं तो कुछ अब भी अपनी इज़्ज़त छिलके से बचाने की कोशिश में हैं । एक स्टील की घायल प्लेट भी हैं जिसमें मूँग दाल के कुछ दाने प्याज़ के टुकड़ों के साथ दोस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं । कुछ साबूत प्याज़ भी हैं जो चटाई की सरहद के पार घुसपैठ करने को तैयार खड़े हैं,सरहद पार करते ही हलाल कर दिये जाएंगे । अंडों के छिलके पड़े हैं जो एक दूसरे की गोद में बैठ कर कम जगह में भी अडजस्ट कर रहे हैं। नमक और लाल मिर्ची की अधखुली पुड़ियाँ इन अंडों के छिलकों को अब तक सांत्वना दे रहीं है।
चटाई के बगल में एक दीवार है, चिप्स और कुरकुरे की कुछ महँगी खालें पड़ी हैं, एक नमकीन का पैकेट भी है,सी थ्रू ड्रेस वाला , बेशर्म पेट फुलाये चटाई की सरहद के पार ज़मीन पर पड़ा हुआ है, शायद अब तक किसी की नज़र ही नहीं पड़ी उस पर ।
चार ग्लास हैं काँच के, अलग अलग आकार के कोई बड़ा कोई छोटा, कोई लंबा कोई मोटा, और हाँ एक स्टील का भी है। इन सभी ग्लासों के हलक में करीब 60 ml शराब पड़ी है जिसकी शादी कुछ ही देर पहले एक डुप्लीकेट मिनरल वाटर बोतल के ठंडे पानी से हुई है, स्टील के ग्लॉस में 60 ml से ज़्यादा शराब है, बाहर से कुछ नज़र नहीं आता ना इसलिए ज़्यादा ले ली गयी है, वो जैसे करप्शन होता है अपने देश में वैसे ही।उस घायल स्टील की प्लेट से कुछ दूर एक बर्फ़ की सफेद ट्रे पड़ी है जिसमें अपने अपने दड़बों में पड़े पड़े कुछ बर्फ़ के टुकड़े रो रहे हैं, इनमें से कुछ टुकड़े ग्लासों में हो रही उस शादी में अपना दम ख़म खपा रहे हैं।
सोड़ा की एक प्लास्टिक बोतल है, ग्लास में हो रही शराब और पानी की शादी में उसका बहुत बड़ा हाथ है, और इस बात की उसको इतनी खुशी है की, ज़मी पर लेटे लेटे अपने हाथ ऊपर किये नागिन डांस कर रही है ।
एक पंखा छत पर घूम रहा है जो सिर्फ आवाज़ से ही अपने होने का एहसास दिला रहा है,सोड़े की बोतल द्वारा हो रहे उस नागिन डांस में उसका भी कुछ हाथ है। हवा बाज़ हैं दोनों के दोनों ।
दो सिगरेट के डब्बे पड़े हैं अलग अलग ब्रैंड के , एक अब भी साबुत है और दूसरे के लगभग तीन किरायेदार घर छोड़ कर जा चुके हैं। एक छोटी मगर दिलेर माचिस की डिबिया अकेले इन दो डब्बों को आँख दिखा रही है। स्त्री सशक्तिकरण का शायद इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। उस अख़बार, उस प्लेट ,उन ग्लासों के आस पास चार लोग बैठे हैं , चार दोस्त । कमरे में सिगरेट का धुआं भरा पड़ा है जो उस तथाकथित पर्दे को चकमा दे कर ज़रा ज़रा करके बाहर हो रहा है ।
बगल में एक लैपटॉप पड़ा है, जिसपर किसी की बेफवाई बयां करने वाला एक पुराना गाना चल रहा है, उन चारों में से एक दिलजला , शून्य में झांकता हुआ कश लगा रहा है, गाने के बोल सिर्फ वही सुन रहा है, बाकी तीन संगीत की दीवार पर बैठे हुए हैं। एक का ध्यान दूर पड़ी उस सस्ती शराब की बोतल पर है , जिसमे पड़ी शराब की मात्रा ये तय करेगी कि खाना कब शुरू करना है। दूसरा जो आर्थिक तौर पर थोड़ा कमज़ोर है अपने ज़हन में ये हिसाब लगा रहा है कि जो ख़र्चा हुआ है उसे चार बराबर भागों में बांटने के बाद, बाकी तीनों से उसे कितना कितना पैसा लेना है। मैं चटाई के इक कोने में बैठा ये सब देख रहा हूं, हम चारों भी तो उन ग्लासों की तरह तो थे, एक दूसरे से एकदम अलग बिलकुल जुदा, फिर भी साथ साथ।
"ठक ठक ठक" दरवाज़े पर कोई आया है शायद, खाना आ गया होगा। "ठक ठक ठक"
पलट कर देखा , टाई पहना एक वेटर खड़ा था। आस पास देखा, तो न वो कमरा था, न चटाई, न पंखा न वो खिड़की न चादर, न वो तीन दोस्त, सिर्फ़ एक महंगा रेस्टॉरेंट था, अंधेरा अँधेरा सा था वहां।
वेटर चमड़े की चमकीली छोटी सी फ़ाइल में बिल लिए खड़ा था,
"Sir ..."
मैंने बिल हाथ में लिया
"ब्लैक लेबल 60 ml - two unit, 650 ml - soda one unit, Tax ...
total Rs,1420 "
मैंने उस बिल को करीब से देखा , उस चमड़े की फ़ाइल में 500 के तीन नोट डाले , कुर्सी से सटा लैपटॉप का काला बैग उठाया और जैकेट कंधे पर लटकाए बाहर निकल गया जैसे आया था वैसे ही ...
अकेले ...
जाते जाते मुड़ कर देखा तो उसी रेस्टॉरेन्ट की वो बड़ी खिड़की नज़र आई, सफ़ेद पर्दा बहुत सुंदर लग रहा था।
और हाँ अब लैपटॉप पर गाने नहीं बजते ...
#mbaria
सर पढ़ अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
अरे ग़ज़ब किया रे भाई, क्या मंजर बांधा है शब्दों का, नए अंदाज में लिखने का भरपूर मजा आया होगा आपको तो... क्या खूबउम्रदराज़ अख़बार सीना चौड़ा किये लेटा है सिगरेट के ठूंठों की लाशें तैर...चिप्स और कुरकुरे की कुछ महँगी खालें, तीन किरायेदार घर छोड़ कर जा चुके,छोटी मगर दिलेर माचिस की डिबिया अकेले इन दो डब्बों को आँख दिखा रही है। स्त्री शशक्तिकरण का शायद इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता जैसे वाक्य पढ़ने को रोचक और मनोरंजक बना रही है... साधुवाद भाई कुल मिलाकर पढ़ने का मजा आया
ReplyDelete:):)
Deleteकुछ शब्दों को एडिट कर ठीक करने की गुंजाइश है जैसे एक जगह- सीगरेट,स्त्री शशक्तिकरण इन्हें ठीक कीजिएगा भाई, आदत से लाचार हूँ नज़र गढ़ ही जाती है इन पर सो बता दिया।
ReplyDeleteKya baat!
ReplyDeleteये वो पल है जो भुला नही जा सकता दोस्तों का प्यार जो हक़ीक़त बयां करता हुआ..
ReplyDeleteक्या लिखा है सर जी । शब्द ही नही है आपके इस शब्दों की कारीगरी की तारीफ के लिए । हर एक शब्द को निम्बू की चाशनी में निचोड़ के लिखा है । अद्धभुत ।
ReplyDeleteलाजवाब लिखते हैं आप...
ReplyDeleteइसको वीडियो/ऑडियो के रूप में कब सुनाएंगे
ReplyDeleteBahaut Sundar!
ReplyDeleteपेग लेते समय यार याद आते हैं।
ReplyDeleteपेग लेके याद आती हैं सहेलियां
कुछ पुरानी यादें ज़ेहन में तैर रही हैं अब तक,
ReplyDeleteलगता है अब वक्त काफ़ी बदल गया....
शब्दो का शानदार संगम हैं गुरु जी 🙏
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा चित्रण किया है, मिथिलेश भाई।। बहुत-बहुत बधाई हो, इसी तरह लिखते रहिए।
ReplyDeleteअच्छा है सर..
ReplyDelete👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर। शब्दों के जादूगर है आप।
ReplyDeleteजैसे लगा पढ़ नहीं रहा हूं मै, नजर के सामने है ये सब।
लाजवाब सर🙏🙌
ReplyDeleteWaah, Sir! Behad Sundar .. Kya khoob! ������
ReplyDeleteHello This is suraj,
ReplyDeleteKya sansar racha hai shbdo ka... Behtarin, aap apni padhi kuch kitabo ke bare me btaye. Please...
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DeleteChhoti chhoti baatein
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बहुत बढ़िया आदरणीय
ReplyDeleteBahut Khub
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