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Tuesday, March 13, 2012

मैं इक सौ रूपए का नोट...



मैं ........ मैं  इक सौ रूपए का नोट...
मंदिरों में चढ़ा कभी...  मज़ारों की दुआ कभी...
किसी की मुठ्ठी... कभी की गरम...   कभी भरे किसी के जखम ....
खून बहाया.. कभी किसी का ....     कभी भरी किसी की चोट....
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

गद्दों के नीचे किसी ने दबाया.... फटे बटुओं में कभी..  किसी ने छुपाया ...
बच्चों की फीस हुआ कभी.... सिगरेट का धुंआ कभी...
 मुनाफा बना कभी  किसी का... कभी किसी की खोट... 
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

कुर्सी को कभी, किसी की  बचाया... रुकी फाइलों को कभी बढ़ाया...   
नेताओं की माला में लगा... वफ़ादारी किसी की.. किसी का दगा.. 
कभी दिलवाए टिकिट  किसी को..  कभी किसी तो वोट..
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

गुल्लक में कभी किसी ने छुपाया... हवा में कभी किसी ने उड़ाया...
कभी बना किसी गरीब की दौलत... कभी  किसी शराबी की लत ..
कभी जूतों के तले.. किसी के....   कभी किसी के होंठ..  
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

अर्थियों पर कभी किसी ने चढ़ाया .... कभी किसी  ने  जन्मदिन मनाया..
बारातों की झूठी शान कभी... .. अस्पतालों में बिकती जान कभी..
कभी दिलाई ज़िन्दगी किसको..... कभी किसी को मौत .... 
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

बच्चों की कभी जिद की पूरी ......  किसी  माँ की कोई ख्वाहिश अधूरी.. 
दोस्तों का उधार कभी ...  रिश्तों का प्यार कभी... 
कभी रूखा सूखा चावल किसी का...  कभी बादाम अखरोट... 
मैं ....... मैं  इक सौ रूपए का नोट...

हाथों से  ही सफ़र गुज़रा है मेरा ...  सेठों ने पकड़ा कभी..कभी मजदूरों ने घेरा 
सीने  से लगाए... कभी कोई बुढिया बिचारी ...  कभी किसी की चमकती  अलमारी.. 
कभी किसी का रेशमी कुर्ता...   कभी पुराना कोट.. 
मैं ........ मैं  इक सौ रूपए का नोट...


फट गया हूँ इधर उधर से  अब....  पड़ा हूँ पुराने नोटों के ढेर में .. 
दो टुकड़े हो जाऊँगा .. अब ..... बस ज़रा सी देर में.. 

उन चमकतें महंगे बटुओं से दूर    .... बच्चों के हाथों में रहना चाहता हूँ.. 
खनकना चाहता हूँ उन  नादान जेबों में...  नोट बन कर फिर खामोश नहीं रहना चाहता हूँ..

इक दो रूपए का सिक्का बनना चाहता हूँ...
इक दो रूपए का सिक्का बनना चाहता हूँ...

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