बातें तेरी अब भी महकती हैं.... यूँ लगता है जैसे की... तुने बस अभी कही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया... पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...
न सच झूठ का पता था मुझे... न सही गलत की खबर...
अपने सचों को को झूठ कहा था मेरे लिए ... मेरी गलतियों को भी... तुने कहा था सही है...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया... पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...
मेरे हर आंसू को थामा था तुने अपना लहू समझ कर...
तेरे बूढी आखोँ को याद कर.... न जाने मेरी आसुओं की ...कितनी नदियाँ बही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया... पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...
मैं अब भी चुप रह के सुनता हूं तुझको....
तेरी वो फटी धुंधली तस्वीर आज न जाने क्या क्या कह रही है..
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया... पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...
वो घर नहीं हैं अब... न वो दीवारें...
दिल को लेकिन कैसे समझाऊं के अब.... तू भी नहीं है...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया... पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...
बहुत खूब लिखा है जनाब...
ReplyDeleteWah Kya baat hai Mithilesh ji. bahut khub kaha aapne.......
ReplyDeletesuper
ReplyDeletetouching. brought back some fond memories
ReplyDeletebahut achhi kavita hai mithilesh. bahut khoob.
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत
ReplyDeletebahut khub.
ReplyDeleteबेहद उम्दा ••••!
ReplyDeleteSo nice mithilesh sir....
ReplyDeleteNice h sir
ReplyDeleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteI like your all poems
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