
मार्च २३ १९३१ ... करीब... अस्सी साल बीत गए थे... वो लाहोर जेल के बाहर आज फिर खडा था... अब भी उसे वो दिन याद था... बहुत भीड़ थी जेल के बाहर.... दो और साथी भी थे उसके... फाँसी पर हँसते हँसते चढ़ा था वह.. वही हंसी आज भी उसके चेहरे पर थी.. देश आज़ाद जो हो चुका था... अस्सी साल बीत गए थे ... बहुत आगे बढ़ गया होगा देश... बहुत कुछ बदल गया होगा...
आखिर जान दी थी उसने... जान..
वह इधर उधर देखने लगा... रात बहोत हो चुकी थी... कोई नज़र नहीं आ रहा था... वह आगे की तरफ बढ़ गया... दूर एक दीवार से सटी खुर्सी पर एक बूढा चौकीदार सो रहा था.... वह चौकीदार के पास पहुंचा .. अपना हाथ उसके कंधो पर रखा और .. धीरे से उसे उठाया... "भाई साहब... भाई साहब....."
नीद कच्ची थी.. चौकीदार ने चेहरा उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखा... कुछ जाना पहचाना सा चेहरा लगा... पर याद नहीं था .. किसका.. जाना पहचाना तो था....
"हाँ भाई... इतनी रात अकेले घूम रहे हो... क्या चाहिए" चौकी दार ने चेहरा याद करने की कोशिश करते हुए.. उस से पुछा
"सब कैसा चल रहा है.. सब कुछ ठीक है ना देश में..हम आज़ाद हैं न अब "
सवाल ही कुछ ऐसा था .. की चौकीदार को याद आ गया.. की चेहरा किसका था...
"आप भगत सिंह हैं ना... भगत सिंह.... "
वोह हल्का सा मुस्कुराया... "हाँ...भगत सिंह ही हूँ.. सब ठीक है ना देश में " ....... उसने फिर से चौकीदार से पुछा..
"हाँ सब ठीक है मुल्क में.. पर यह आपका मुल्क नहीं है आप लाहोर में हैं "
"यह पाकिस्तान हैं जनाब.. पाकिस्तान ...., आप हिंदुस्तान जाइए.. दिल्ली जाइए..."
वोह घबरा गया... "पकिस्तान ?? हिन्दुस्तान ??
" हाँ बेटा अब तो चौंसठ साल हो गए" चौकीदार ने उसकी आखों में देखते हुए कहा...
वोह मुड कर वापस अँधेरे की तरफ जाने लगा... हलके हलके कदमों से... वापस मुड कर नहीं देखा... बस चला जा रहा था ... धीरे धीरे...
चेहरे पर हंसी नहीं थी अब... आखें भीग आयीं थी .... वोह इतना कमज़ोर नहीं था.. फाँसी पर भी हँसते हँसते चढ़ा था वह ...... पर आज आखें भीग आयीं थी..
जान दी थी उसने.... जान.....
beautiful !!!!
ReplyDeleteशायद भगत सिंह के सपनो का भारत हमने बहुत पीछे छोड़ दिया ,
ReplyDeleteशायद भगत सिंह के सपनो का भारत उनके साथ ही सुली पर चढ़ गया
Deletevery thought provoking mithilesh bhai
ReplyDeletereally touching piece.
ReplyDeleteAankho me aansu aa Gaye kuch kahne k layeq nahi hein ham sab
ReplyDeleteSir Beautifully Written Touched Our Heart.. <3 Shaheed Bhagat Singh.. will remain in our heart.
ReplyDeleteMithilesh .. you create magic in everything you write .. i could literally feel the story .. a short story which leaves behind intense thoughts of teh long path we have trodden and the futility of it all ,, but phir bhi hanste jana haii and zinda rehte jana haii ! God bless ...
ReplyDeleteBeautifully portrays the agony of those who fought for independence
ReplyDeleteअब बस किस्सों कहानियों में या फिर राजनैतिक लाभ लिए ही उन्हें याद किया जाता है। इतने सालो में उस वतन, उस वतन के रहनेवालों सबका पतना हो गया जिसके लिए उन्होंने बलिदान दिया था।
ReplyDelete